“तुम कभी भुलाए नहीं गए“प्रवासी – ये शब्द सिर्फ भावनाएं नहीं, एक मां के 42 साल के इंतजार की गवाही हैं।

भूमिका
जब कोई इंसान बेहतर जीवन की तलाश में देश छोड़ता है, तो उसके दिल में उम्मीदें होती हैं –
अपने परिवार को बेहतर भविष्य देना, गरीबी से लड़ना और एक पहचान बनाना।
लेकिन हर प्रवासी की कहानी खुशहाल अंत नहीं पाती।
कुछ कहानियां दर्द, संघर्ष और गुमनामी से भरी होती हैं।
ऐसी ही एक सच्ची और दिल को छू लेने वाली कहानी है – गोपालन चंद्रन की।
बहरीन की ओर पहला कदम
1983 में, केरल के त्रिवेंद्रम जिले के पास स्थित एक छोटे से गांव पाउदिकोनम के रहने वाले गोपालन चंद्रन ने बहरीन की उड़ान भरी थी।
मकसद साफ था – अच्छी नौकरी, बेहतर आमदनी और अपने परिवार के लिए उज्जवल भविष्य।
उस समय वे मात्र 32 वर्ष के थे। लेकिन किस्मत ने उनके साथ क्रूर मज़ाक किया।
नियोक्ता की मृत्यु और पासपोर्ट का गायब होना
बहरीन पहुंचते ही कुछ ही दिनों में उनके नियोक्ता की अचानक मृत्यु हो गई।
इससे भी बड़ा झटका उन्हें तब लगा जब उनका पासपोर्ट भी खो गया।
अब वे न तो कहीं नौकरी पा सकते थे,
न ही वापस लौट सकते थे।
अचानक वे एक undocumented migrant बन गए – बिना किसी वैध दस्तावेज़ के एक अनजान देश में फंसे हुए।
42 साल की गुमनामी

बिना दस्तावेजों के गोपालन बहरीन में एक कानूनी शून्यता (legal limbo) में फंस गए। वह ना भारत लौट सकते थे, ना ही वहां कोई सरकारी सुविधा पा सकते थे। उन्होंने छोटे-मोटे काम करके अपनी गुजर-बसर की, कई बार भूखे रहे, बीमार हुए लेकिन किसी से कुछ कह नहीं पाए।
उनकी कहानी न तो मीडिया में आई, न किसी सरकार ने उन्हें नोटिस किया – वे जिंदा तो थे, लेकिन किसी के लिए मौजूद नहीं थे।
प्रवासी लीगल सेल (PLC) बना मसीहा
इस कहानी में रोशनी तब आई जब प्रवासी लीगल सेल (PLC) ने गोपालन की जानकारी हासिल की। PLC एक गैर-सरकारी संगठन है जिसमें रिटायर्ड जज, वकील और पत्रकार शामिल हैं। ये संगठन भारत और विदेशों में फंसे भारतीयों को न्याय दिलाने का कार्य करता है।
PLC के बहरीन चैप्टर के अध्यक्ष सुधीर थिरुनिलथ और उनकी टीम ने भारतीय दूतावास और बहरीन के इमिग्रेशन विभाग से मिलकर गोपालन की कानूनी पहचान फिर से स्थापित की। सालों की फाइलों, कागजात और नियमों की भूलभुलैया को पार कर, उन्होंने आखिरकार गोपालन के लिए भारत वापसी संभव बनाई।
मां के इंतजार का अंत
42 साल बाद जब गोपालन भारत लौटे, तो सबसे भावुक दृश्य था उनकी 95 वर्षीय मां से मुलाकात। एक मां जिसने अपने बेटे को खोया नहीं, बल्कि हर दिन उसकी वापसी की दुआ की। उनका मिलना सिर्फ एक व्यक्तिगत पल नहीं था – वह हर प्रवासी मां की प्रतीक्षा और प्यार का प्रतीक बन गया।
“मेरे लिए यह एक बहुत ही भावुक पल था गोपालन के लिए, जब वह अपनी 95 वर्षीय मां से मिले। शुक्र है भगवान का।”
PLC का फेसबुक पोस्ट: एक भावनात्मक दस्तावेज़
**”गोपालन आज सुबह बिना किसी सामान के – सिर्फ यादें, आंसू और अपने परिवार से मिलने की आस लिए भारत लौटे। यह केवल एक व्यक्ति की घर वापसी नहीं है, यह दर्शाता है कि इंसानियत, न्याय और करुणा जब साथ आते हैं तो चमत्कार होते हैं।
स्वागत है गोपालन, तुम कभी भुलाए नहीं गए।”**
संदेश और सबक
हर प्रवासी की एक कहानी होती है, लेकिन कुछ की आवाज खो जाती है।
गोपालन की वापसी इस बात का प्रमाण है कि अगर समाज और सरकार साथ आएं,
तो खोए हुए लोगों को वापस लाया जा सकता है।
सरकारी प्रक्रिया को सरल और मानवीय बनाया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई गोपालन जैसी परिस्थिति में न फंसे।
PLC जैसे संगठनों को समर्थन देना चाहिए, क्योंकि वे वो काम कर रहे हैं जो कई बार सरकारें भी नहीं कर पातीं।
अंतिम शब्द

गोपालन चंद्रन की यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं है,
यह उन लाखों भारतीय प्रवासियों की कहानी है जो बेहतर भविष्य के लिए अपना घर छोड़ते हैं,
पर कई बार रास्ता भटक जाते हैं।
आज, जब गोपालन अपनी मां की बाहों में हैं, तो यह केवल एक परिवार का मिलन नहीं है – यह इंसानियत की जीत है।