स्किल[Skill] इन इंडिया: क्या पढ़ाई के बाद भी हम तैयार हैं?

[इंडिया] भारत में एक बच्चा 26 साल की उम्र तक किताबें रटता है, एग्जाम देता है, ट्यूशन जाता है… लेकिन जब जॉब इंटरव्यू का वक्त आता है, तो आत्मविश्वास नज़र नहीं आता।

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सवाल ये है — गलती किसकी है? उस बच्चे की जो सालों से पढ़ रहा है? या उस सिस्टम की जो उसे सिर्फ नंबर लाना सिखा रहा है, स्किल नहीं?

सच कहें तो हमारे देश में गली-गली स्कूल जरूर खुल गए हैं, पर उनका मकसद शिक्षा देना कम

और पैसा कमाना ज़्यादा हो गया है।

स्कूल अब शिक्षा का मंदिर नहीं, एक शानदार बिज़नेस मॉडल बन चुके हैं।

सरकारी स्कूलों में तो हालात ऐसे हैं कि वहां सिर्फ हाजिरी लगती है, पढ़ाई नहीं होती।

और प्राइवेट स्कूलों में फीस इतनी कि एक गरीब तो क्या, एक आम इंसान भी सोच में पड़ जाए —

क्या मेरे बच्चे को पढ़ा पाऊंगा?

आजकल हर कोई सरकारी नौकरी चाहता है, और अगर वो सरकारी टीचर की हो,

तो जैसे जैकपॉट लग गया। सुबह 9 से 4 की ड्यूटी, फिर शाम को ट्यूशन से एक्स्ट्रा इनकम! लेकिन दुःख की बात ये है कि जो लोग खुद मेहनत करके सरकारी शिक्षक बनते हैं, वही क्लासरूम में जाकर जिम्मेदारी से नहीं पढ़ाते। नतीजा —

सरकारी स्कूलों से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है।

हर माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर कुछ बड़ा बने।

इसलिए मजबूरी में वे प्राइवेट स्कूल की ओर भागते हैं।

लेकिन वहां भी मनमानी फीस — सोचिए, एक नर्सरी के बच्चे की ऐडमिशन फीस ₹20,000 से कम नहीं!

और ये तो मीडियम लेवल स्कूल की बात है… टॉप स्कूल की फीस तो सुनकर ही होश उड़ जाए।

महीने की फीस ₹1,000 से ₹2,000… सिर्फ “A B C” और “One Two Three” सिखाने के लिए! आखिर क्यों?

कोई रोकने वाला नहीं, कोई नियम नहीं।

प्राइवेट स्कूल एक छोटी बिल्डिंग से शुरू होते हैं, और कुछ ही सालों में महल बन जाते हैं।

लेकिन जिन बच्चों से करोड़ों की कमाई होती है, वही बच्चे आगे चलकर ₹10,000 की नौकरी के लिए भी तैयार नहीं होते।

मतलब स्कूल ने फीस तो ली, लेकिन बदले में स्किल क्या दी? कुछ नहीं!

स्कूल के बाहर टॉपर बच्चों की तस्वीरें जरूर लगाई जाती हैं — पर सोचिए, 500 बच्चों में से सिर्फ 10 टॉप करते हैं।

तो सवाल ये है: बाकी 490 कहां हैं? क्या वो फेल हो गए? क्या वो लायक नहीं थे? या स्कूल ने उन्हें कभी लायक बनने ही नहीं दिया?

असल में, जो बच्चे टॉपर बनते हैं, वो किसी भी स्कूल से पढ़कर टॉप कर सकते हैं।

स्कूल की असली ताकत तब दिखेगी जब हर बच्चा कुछ न कुछ हासिल करे, जब 500 में से 490 बच्चे सफलता की राह पर चलें।

अब वक्त है सोचने का। हमें सिर्फ डिग्री नहीं, स्किल चाहिए। हमें सिर्फ नंबर नहीं, नॉलेज चाहिए।

और सबसे ज़रूरी — हमें ऐसा सिस्टम चाहिए जो बच्चों को सिखाए कैसे जिया जाता है, कैसे आत्मनिर्भर बना जाता है।

क्योंकि जब तक स्कूल सिर्फ कमाई का जरिया बने रहेंगे, तब तक भारत पढ़ेगा तो सही… लेकिन बढ़ेगा नहीं।

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स्किल इंडिया अभियान: भारत को कुशल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

(Skill India Mission: A Key Step Towards a Skilled India)

परिचय

भारत सरकार द्वारा 15 जुलाई 2015 को शुरू किया गया स्किल इंडिया मिशन देश के युवाओं को कौशल विकास के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का एक प्रयास है।

इसका उद्देश्य युवाओं को उनकी रुचि और उद्योग की मांग के अनुसार प्रशिक्षित करना है।

स्किल इंडिया के मुख्य उद्देश्य

युवाओं को व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण देना

बेरोजगारी को कम करना

स्वरोजगार को बढ़ावा देना

उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुसार श्रमबल तैयार करना

मुख्य योजनाएं और पहल

1. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)

इसके तहत युवाओं को निशुल्क प्रशिक्षण और प्रमाण पत्र प्रदान किए जाते हैं।

2. Recognition of Prior Learning (RPL)

जिनके पास पहले से कौशल है, उन्हें भी मान्यता और प्रमाणपत्र दिया जाता है।

3. डिजिटल स्किलिंग और उद्यमिता विकास

तकनीकी और व्यवसायिक प्रशिक्षण के साथ-साथ नए उद्यमी बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है।

योजना का प्रभाव

लाखों युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं

ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों तक प्रशिक्षण की पहुँच बनी है

महिलाएं भी इस योजना का हिस्सा बनकर आत्मनिर्भर बन रही हैं

भारत के श्रमबल की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है

निष्कर्ष

स्किल इंडिया एक दूरदर्शी योजना है जो भारत को “कौशलयुक्त राष्ट्र” बनाने की दिशा में कार्यरत है।

यह न केवल आर्थिक विकास में सहायक है, बल्कि सामाजिक सशक्तिकरण का भी माध्यम है। युवाओं को हुनरमंद बनाकर यह मिशन उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करता है।

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