सर्जिकल[Surgical] स्ट्राइक पर चन्नी का बयान: क्या राजनीति के लिए सेना पर उठते हैं सवाल?

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाकर विवाद खड़ा कर दिया है। क्या राजनीति में सुर्खियों के लिए सेना के बलिदान को नजरअंदाज किया जा रहा है? पढ़ें इस विवाद की पूरी कहानी

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क्या राजनीति में ‘लाइमलाइट’ के लिए सेना के बलिदान पर उठते हैं सवाल?

जालंधर से सांसद चन्नी जिनके गायब होने पोस्टर लगे थे जालंधर की दीवारों पर,

क्योंकि वो जीतने के बाद कभी नजर नहीं आए। उन्होंने अब लोगों के नजर में आने के लिए सेना पर ही उंगली उठा दी

और रातों रात भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर हो गए

जनता की सेवा से मशहूर नहीं होना बल्कि देश को बदनाम करो और नजरों में आओ जिससे पता लगा कि सांसद साहिब काम कर रहे हैं लोगों के लिए नहीं बल्कि खुद की पब्लिसिटी के लिए।

हाल ही में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने एक विवादित बयान देकर देशभर में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया।

उन्होंने फिर एक बार सर्जिकल स्ट्राइक की सच्चाई पर सवाल उठाते हुए कहा, “मैं आज तक पूछ रहा हूं कि सर्जिकल स्ट्राइक हुई कहां? कितने लोग मरे? कोई सबूत क्यों नहीं दिखाया गया?

उनके इस बयान को लेकर देशभर में तीखी प्रतिक्रियाएं आईं। इस तरह के बयानों पर कई नेताओं और आम जनता ने नाराजगी जताई।

सर्जिकल स्ट्राइक: सेना की बहादुरी का प्रतीक

सितंबर 2016 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया था।

यह कार्रवाई उरी में हुए आतंकी हमले के जवाब में की गई थी, जिसमें 19 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे।

यह ऑपरेशन सेना के विशेष कमांडो बलों द्वारा रात के अंधेरे में किया गया और इसमें कई आतंकी और उनके ठिकाने तबाह कर दिए गए।

भारत सरकार ने इस ऑपरेशन की जानकारी खुद प्रेस कांफ्रेंस के जरिए दी थी

और रक्षा मंत्रालय ने सीमित विडियो फुटेज भी जारी किया था।

इसके बावजूद, समय-समय पर कुछ राजनेता इस पर सवाल उठाते रहे हैं।

चन्नी के बयान से राजनीतिक पारा चढ़ा

चरणजीत सिंह चन्नी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में चुनावी माहौल बना हुआ है। उन्होंने कहा, “मैं आज भी कह रहा हूं कि कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुई। दिखाइए न वीडियो, कहां हुई? कितने लोग मरे?

इस बयान के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर उनकी कड़ी आलोचना शुरू हो गई।

कई लोग इसे देश के सैनिकों के बलिदान का अपमान मान रहे हैं।

विरोध के स्वर केवल जनता तक सीमित नहीं रहे। कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी चन्नी की आलोचना करते हुए कहा कि चुनाव में सुर्खियां पाने के लिए ऐसे गैर-जिम्मेदाराना बयान देना देश के खिलाफ है।

बयान से पलटे चन्नी, दी सफाई

तेज विरोध और विवाद बढ़ता देख चन्नी ने अपने बयान पर सफाई दी और

कहा कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।

उन्होंने कहा कि उनका मकसद सेना की वीरता पर सवाल उठाना नहीं था,

बल्कि वे पारदर्शिता की बात कर रहे थे।

हालांकि, उनकी सफाई से बहुत लोग संतुष्ट नहीं हुए और उन्हें यह बयान पूरी तरह से वापस लेना पड़ा।

क्या सिर्फ सुर्खियों में आने के लिए दिया गया बयान?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चन्नी का यह बयान चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

कुछ का यह भी मानना है कि वे खुद को प्रासंगिक बनाए रखने और मीडिया की सुर्खियों में बने रहने के लिए ऐसा बोल गए।

पिछले कुछ समय से चन्नी किसी बड़ी खबर का हिस्सा नहीं बने थे और उनके इस बयान ने उन्हें राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया।

देशभक्ति और राजनीति: कहां खींची जाए सीमा?

यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है कि क्या राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए देश की सेना

और उसकी कार्रवाईयों पर सवाल उठाना जायज़ है?

भारत की सेना विश्व की सबसे अनुशासित सेनाओं में से एक मानी जाती है

और उसका हर अभियान देश की रक्षा और नागरिकों की सुरक्षा के लिए होता है।

ऐसे में सियासी फायदे के लिए इन अभियानों पर शक जाहिर करना ना सिर्फ अनुचित है,

बल्कि सैनिकों के मनोबल को भी प्रभावित कर सकता है।

जनता की प्रतिक्रिया: गुस्सा और दुख

सामान्य जनता ने इस बयान को लेकर गहरा आक्रोश जताया।

सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स ने कहा कि जो लोग खुद एयरकंडीशन्ड कमरों में बैठकर बयान देते हैं,

उन्हें सीमाओं पर खड़े जवानों की कुर्बानी का कोई अंदाज़ा नहीं होता।

कुछ ने चन्नी से यह तक पूछ डाला कि क्या वे एक बार सीमा पर जाकर देखें कि देश की रक्षा करना कितना कठिन होता है।

अन्य नेताओं के विवादित बयान भी आए सामने

यह पहली बार नहीं है जब किसी राजनेता ने सर्जिकल स्ट्राइक या सेना की कार्रवाई पर सवाल उठाया हो।

इससे पहले भी कुछ नेताओं ने वीडियो या सबूत मांगते हुए बयान दिए हैं।

लेकिन यह एक खतरनाक प्रवृत्ति बनती जा रही है,

जब देश की सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील जानकारियों को सार्वजनिक करने की मांग की जाती है —

सिर्फ इसलिए ताकि राजनैतिक प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिल सके।

सेना की गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा

सेना के अभियान अत्यंत गोपनीय होते हैं और उनमें कई खुफिया जानकारी शामिल होती है।

यदि हर ऑपरेशन का सार्वजनिक सबूत मांगा जाएगा,

तो इससे दुश्मन देशों को भारत की रणनीतियों और ऑपरेशन मोडस ऑपेरेंडी के बारे में जानकारी मिल सकती है।

यह सीधे तौर पर देश की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।

निष्कर्ष: राजनीति में संयम और जिम्मेदारी जरूरी

चरणजीत सिंह चन्नी का सर्जिकल स्ट्राइक पर बयान एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या राजनीति में खुद को स्थापित करने या चर्चाओं में बने रहने के लिए देश की सुरक्षा और सेना पर सवाल उठाना सही है?

क्या ऐसे बयानों से देश की एकता और जवानों के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचती?

देश को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो सेना का मनोबल बढ़ाएं, न कि उन्हें नीचा दिखाने वाले बयान दें।

हर भारतीय नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वह सेना के परिश्रम, बलिदान और त्याग को सम्मान दे, और राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे चुनावी रणनीति में देशहित को सर्वोपरि रखें।

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