[सन्नाटा] शहर की भागदौड़ में एक गली ऐसी भी थी जहाँ समय थम-सा गया था। गली नंबर 9 — एक ऐसी जगह जहाँ लोग दिन में भी कदम रखने से कतराते थे। लोग कहते थे, “वहाँ कुछ अजीब है… कोई साया है शायद।” और उस गली का सबसे पुराना घर — नंबर 49 — पिछले 5 साल से बंद पड़ा था। लेकिन उस रात… सब कुछ बदल गया।
रात के 2:13 पर पुलिस कंट्रोल रूम में एक कॉल आता है। कॉल करने वाली एक लड़की थी, उसकी आवाज़ डरी हुई थी — “प्लीज़… मुझे बचा लीजिए… वो मुझे मार देगा… गली नंबर 9… घर नंबर 49…”
और फिर कॉल कट।

सब-इंस्पेक्टर अजय वर्मा, जो उस समय नाइट ड्यूटी पर था, तुरंत एक्टिव हुआ। “रेड अलर्ट टीम को भेजो,” उसने कहा। दस मिनट के अंदर टीम गली नंबर 9 पहुँच गई।
घर नंबर 49 का दरवाज़ा आधा खुला था। अंधेरा, सन्नाटा और सड़ती हुई लकड़ी की गंध। दरवाज़ा हल्के से धक्का देते ही चरचराकर खुला। अंदर का दृश्य डरावना था — एक बिखरा हुआ ड्रॉइंग रूम, पुरानी तस्वीरें दीवारों पर, और फर्श पर खून के सूखे निशान।
“सर, ये घर तो सालों से बंद है। यहां कोई रहता नहीं,” कांस्टेबल राजीव बोला।
“तो कॉल किसने किया?” अजय ने सवाल दागा।
उन्होंने पूरे घर की तलाशी ली — हर कमरा देखा, हर अलमारी खोली, लेकिन कोई इंसान, कोई सबूत नहीं मिला… सिवाय एक कमरे के… जहाँ उन्हें एक पुरानी डायरी मिली।
डायरी के पन्ने पीले पड़ चुके थे। उस पर लिखा था —
“मेरा नाम नेहा है। अगर कोई ये डायरी पढ़ रहा है, तो समझ जाना कि मुझे मार दिया गया है। मेरे मंगेतर रोहित ने… मेरी ज़िंदगी छीन ली… और किसी को पता भी नहीं चला।”
अजय का माथा ठनका। उसने तुरंत टेक्निकल टीम को कॉल ट्रेस करने को कहा। लोकेशन वही निकली — घर नंबर 49। लेकिन सिम कार्ड फर्जी निकला, और फोन… जैसे हवा में गायब हो गया हो।
अजय ने केस को गहराई से खोलने का फैसला किया। अगली सुबह उन्होंने उस इलाके के पुराने केस रिकॉर्ड खंगाले। और वहां एक नाम मिला — नेहा शर्मा, उम्र 24, पेशे से टीचर, 5 साल पहले लापता हो गई थी। केस फाइल में लिखा था — “गुमशुदगी का मामला, कोई पुख्ता सबूत नहीं। केस बंद।”
पर एक बात चौंकाने वाली थी — नेहा के मंगेतर का नाम था रोहित माथुर — जो अब शहर का नामी बिजनेसमैन बन चुका था।
अजय ने रोहित को पूछताछ के लिए बुलाया।
“सर, मुझे नहीं पता नेहा कहाँ है। हमने सगाई की थी, लेकिन फिर वो अचानक गायब हो गई। पुलिस ने मुझे क्लीन चिट दी थी,” रोहित ने शांत स्वर में कहा।
“लेकिन कल रात किसी ने उसके नाम से कॉल किया… उसी घर से, जहाँ आप दोनों आखिरी बार देखे गए थे,” अजय ने सीधा वार किया।
रोहित का चेहरा थोड़ी देर के लिए पीला पड़ गया, पर उसने खुद को संभाल लिया। “मैंने कुछ नहीं किया,” उसने दोहराया।
अजय ने डायरी को दिखाया। रोहित ने उसकी तरफ देखा, फिर कहा — “ये फर्ज़ी है। नेहा की हैंडराइटिंग नहीं है।”
लेकिन अजय संतुष्ट नहीं था।
अगले कुछ दिनों में अजय ने वो घर दोबारा छान मारा। और एक तहखाने का पता चला, जो पहले नजरों से छिपा था। तहखाने का दरवाज़ा जंग खा चुका था, लेकिन किसी तरह उसे खोला गया।
अंदर… एक इंसानी कंकाल मिला।
पास में एक टूटी हुई चूड़ी, और एक पायल पड़ी थी।
फॉरेंसिक जांच में साफ हुआ — कंकाल महिला का था। DNA मैच ने साबित कर दिया — वो नेहा शर्मा थी।
अब रोहित के बचने का कोई रास्ता नहीं था।
पुलिस ने उसे दोबारा हिरासत में लिया। इस बार अजय ने सख्ती दिखाई। और आखिरकार… रोहित टूट गया।
“हाँ, मैंने ही मारा था नेहा को।”
उसकी आंखें खाली थीं, आवाज़ ठंडी।
“हम दोनों की सगाई हो चुकी थी। लेकिन नेहा को मेरे कुछ काले धंधों का पता चल गया था। वो मुझे छोड़ना चाहती थी। वो अगर पुलिस तक पहुँचती, तो मेरा सब कुछ खत्म हो जाता। उस रात मैंने उसे इसी घर में बुलाया… और गुस्से में गला घोंट दिया।”
“लाश को तहखाने में छुपा दिया… सब कुछ साफ कर दिया… और पुलिस को गुमशुदगी की रिपोर्ट दे दी।”
“5 साल तक कोई कुछ नहीं जान पाया…”
अजय ने एक गहरी सांस ली। “लेकिन फिर कॉल किसने किया, रोहित?”
रोहित चुप रहा। फिर बुदबुदाया — “पता नहीं… लेकिन आवाज़… उसकी थी… नेहा की…”
उसके चेहरे पर डर था। ऐसा डर जो एक कातिल को भी बेचैन कर दे।
“क्या… क्या आत्माएं सच में होती हैं?” उसने खुद से सवाल किया।
अजय ने कुछ नहीं कहा। केस मजबूत था। रोहित को गिरफ़्तार कर लिया गया।
लेकिन केस फाइल के आखिरी पन्ने पर सब-इंस्पेक्टर अजय ने एक लाइन लिखी —
“कभी-कभी न्याय पुलिस नहीं, आत्माएं दिलाती हैं…”
समाप्त।
(Note: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। इनका किसी जीवित व्यक्ति या स्थान से कोई संबंध नहीं है।)