ऑपरेशन सिंदूर के बाद विपक्ष ने सरकार से विशेष संसद सत्र की मांग की है। तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और खड़गे सहित कई नेताओं ने सेना को सम्मानित करने और नुकसान-पायदे की समीक्षा की मांग की। जानिए पूरी रिपोर्ट।

भूमिका: ऑपरेशन के बाद राजनीतिक हलचल
ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के चलते भारत और पाकिस्तान के बीच पैदा हुए तनाव के बाद अब जब स्थिति थोड़ी शांत होती दिख रही है, तब देश के राजनीतिक गलियारों में एक नई मांग ने ज़ोर पकड़ लिया है। कई विपक्षी पार्टियों ने सरकार से विशेष संसद सत्र बुलाने की अपील की है, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर से हुए नुकसान और फायदे पर चर्चा हो सके। इस सत्र में भारतीय सेना की भूमिका पर चर्चा और उनका सम्मान करने की मांग भी उठाई जा रही है।
तेजस्वी यादव की विशेष सत्र की मांग
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सबसे पहले यह प्रस्ताव रखा कि एक विशेष सत्र आयोजित किया जाए। उन्होंने कहा कि पूरा देश जानना चाहता है कि:
इस ऑपरेशन में देश को कितना नुकसान हुआ?
भारतीय सेना ने क्या-क्या उपलब्धियां हासिल कीं?
किन क्षेत्रों में सेना ने अपना रणनीतिक दबदबा बनाया?
तेजस्वी ने यह भी कहा कि सभी दलों को एक साथ मिलकर भारतीय सेना को सम्मानित करना चाहिए और देश की एकता का संदेश देना चाहिए।
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मांग को और बल दिया जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा। इस पत्र में राहुल गांधी ने आग्रह किया कि:
“देश की जनता के मन में कई सवाल हैं, जिन्हें संसद के माध्यम से जवाब मिलना चाहिए।”
राहुल गांधी ने लिखा कि संसद का विशेष सत्र बुलाकर इस पूरे मुद्दे पर खुलकर चर्चा की जाए। उनका कहना था कि सरकार को पारदर्शिता के साथ जनता को बताना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर से क्या हासिल हुआ और क्या खतरे अभी भी बाकी हैं।

मल्लिकार्जुन खड़गे का भी समर्थन
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की मांग का समर्थन किया।
खड़गे ने कहा कि:
इस विषय पर लोकतांत्रिक बहस जरूरी है।
संसद लोकतंत्र का मंदिर है और यहां हर राष्ट्रीय मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए।
सेना के पराक्रम को सरकारी बयान तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि पूरे विपक्ष को भी इसमें भागीदारी देनी चाहिए।
अन्य विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया
तेजस्वी और कांग्रेस के अलावा अन्य विपक्षी दलों जैसे तृणमूल कांग्रेस (TMC), आम आदमी पार्टी (AAP), समाजवादी पार्टी (SP) और डीएमके (DMK) ने भी सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द एक विशेष संसद सत्र आयोजित किया जाए। इन दलों का मानना है कि:
भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका अहम है।
सरकार को जवाबदेह बनाना ही लोकतंत्र की ताकत है।
सेना के प्रयासों की प्रशंसा एकजुट होकर होनी चाहिए।
सरकार की चुप्पी और अगला कदम
सरकार की ओर से अभी तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। परंतु प्रधानमंत्री कार्यालय और रक्षा मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार, सरकार अभी DGMO स्तर पर जारी बातचीत के नतीजों का इंतज़ार कर रही है।
12 मई 2025 को दोपहर 12 बजे भारत और पाकिस्तान के DGMO (Director General of Military Operations) के बीच अहम बैठक होनी है, जिसमें:
सीमा पर स्थायी शांति का मुद्दा उठेगा।
पाकिस्तान की तरफ से कोई नया प्रस्ताव आता है या नहीं, ये देखा जाएगा।
भारत अपनी शर्तों पर ही किसी भी बातचीत को आगे बढ़ाएगा।
लेखक का विश्लेषण: विपक्ष को थोड़ा सब्र करना चाहिए
लेखक के तौर पर मैं यह मानता हूँ कि विपक्ष की यह मांग उचित है।
लोकतंत्र में विपक्ष का काम केवल आलोचना करना नहीं, बल्कि देशहित के मामलों में भागीदार बनना भी है। सेना के पराक्रम की प्रशंसा और ऑपरेशन सिंदूर के परिणामों की समीक्षा होना चाहिए।
लेकिन इसके साथ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि अभी स्थिति पूरी तरह शांत नहीं हुई है।
DGMO स्तर की बातचीत के बाद ही यह साफ होगा कि:

सीमा पर दुबारा हिंसा होगी या नहीं
पाकिस्तान अपने वादों पर कितना अमल करेगा
भारत की रणनीति अगले चरण में क्या होगी
इसलिए, थोड़ा धैर्य रखना आवश्यक है। संसद का विशेष सत्र तब बुलाया जाए जब सारी तस्वीर साफ हो जाए। इससे चर्चा भी संतुलित होगी और सेना के पराक्रम की पूरी जानकारी के साथ उसे सम्मानित किया जा सकेगा।
निष्कर्ष: लोकतंत्र में संवाद जरूरी है
विपक्ष की भूमिका लोकतंत्र में बेहद अहम होती है।
विशेष संसद सत्र की मांग इस बात का प्रमाण है कि भारत का लोकतंत्र अभी भी जीवंत है।
पर इस संवेदनशील समय में विपक्ष को भी संयम के साथ अपने दायित्व निभाने चाहिए।
जैसे ही हालात पूरी तरह सामान्य होंगे, उम्मीद की जा सकती है कि सरकार इस मांग पर सकारात्मक कदम उठाएगी।