भारतीय रेलवे के नए फैसले के तहत अब लोको पायलट्स को लंच और टॉयलेट ब्रेक नहीं मिलेगा। जानिए क्यों लिया गया यह निर्णय और क्या है कर्मचारियों की प्रतिक्रिया।
“अगर हम मशीनों की तरह काम करेंगे, तो इंसानियत कहाँ बचेगी?” – एक लोको पायलट
भारतीय रेलवे ने अपने लोको पायलट्स को लेकर एक बड़ा और विवादास्पद फैसला लिया है। अब ट्रेन चलाने के दौरान लोको पायलट्स को न तो लंच ब्रेक मिलेगा और न ही टॉयलेट जाने की अनुमति दी जाएगी। इस फैसले से रेलवे कर्मचारियों में आक्रोश है और कई यूनियनों ने इसके विरोध में आवाज़ उठानी शुरू कर दी है।
क्या है पूरा मामला?
भारतीय रेलवे का कहना है कि ट्रेन संचालन को अधिक समयबद्ध और कुशल बनाने के लिए यह कदम उठाया गया है। रेल मंत्रालय के अनुसार, ब्रेक के दौरान ट्रेनों में देरी होती है, जिससे यात्रियों की असुविधा बढ़ती है और ऑपरेशनल लागत भी बढ़ जाती है।
हालांकि, इस नए नियम ने लोको पायलट्स के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
लोको पायलट्स की प्रतिक्रिया
लोको पायलट्स का कहना है कि यह नियम अमानवीय है। एक लोको पायलट ने बताया:
“हम लगातार 6-8 घंटे ट्रेन चलाते हैं। अगर हमें ब्रेक नहीं मिलेगा, तो यह ना सिर्फ हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि ट्रेन की सुरक्षा पर भी असर डालेगा।”
रेलवे यूनियन भी इस मुद्दे पर काफी नाराज़ हैं और जल्द ही रेलवे बोर्ड से औपचारिक शिकायत दर्ज करने की योजना बना रहे हैं। यूनियनों का कहना है कि यह नियम अंतरराष्ट्रीय मानकों और मानवाधिकारों के खिलाफ है।
क्या कहती है नीति?
अभी तक रेलवे की ओर से इस नए आदेश की कोई आधिकारिक कॉपी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन रेलवे सूत्रों के अनुसार सभी ज़ोन को मौखिक रूप से सूचित किया गया है कि लोको पायलट्स को मिड-ड्यूटी ब्रेक न दिया जाए।
यात्रियों की सुरक्षा पर सवाल
एक्सपर्ट्स का कहना है कि थके हुए लोको पायलट्स के कारण दुर्घटना का जोखिम कई गुना बढ़ सकता है। अगर लोको पायलट शारीरिक और मानसिक रूप से थके हुए होंगे, तो उनकी प्रतिक्रिया की गति धीमी हो सकती है, जो किसी भी इमरजेंसी में घातक साबित हो सकती है।
निष्कर्ष
भारतीय रेलवे का यह फैसला आने वाले दिनों में बड़ी बहस का विषय बन सकता है। कर्मचारियों की नाराजगी और यूनियनों के विरोध के चलते रेलवे को शायद इस निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़े।