राहुल गांधी की बिहार यात्रा: कांग्रेस की नई रणनीति और चुनावी समीकरण पर असर

बिहार की सियासी ज़मीन पर इन दिनों हलचल तेज़ है, और इसकी बड़ी वजह हैं कांग्रेस नेता राहुल गांधी, जो पिछले तीन महीनों में तीसरी बार बिहार का दौरा करने जा रहे हैं। यह कोई सामान्य राजनीतिक दौरा नहीं, बल्कि कांग्रेस की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत पार्टी राज्य में अपनी खोई ज़मीन वापस पाने की पूरी कोशिश में जुटी है।

कांग्रेस की स्थिति और चुनौती

वर्तमान में बिहार में कांग्रेस के पास तीन लोकसभा सांसद और 19 विधायक हैं।

हालांकि ये आंकड़े बहुत प्रभावशाली नहीं हैं,

लेकिन पार्टी इन्हीं आधारों को मज़बूत कर राज्य में फिर से खड़े होने की कोशिश कर रही है।

राहुल गांधी की सक्रियता, बार-बार के दौरे और स्थानीय नेताओं को फिर से एक्टिव करना इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं।

बिहार जैसे राज्य में जहाँ जातीय समीकरण, स्थानीय मुद्दे और गठबंधन की राजनीति प्रमुख भूमिका निभाते हैं, कांग्रेस अब कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।

NSUI की यात्रा और युवा शक्ति

राहुल गांधी इस बार बिहार में NSUI (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) की यात्रा में हिस्सा लेंगे, जो कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार के नेतृत्व में निकाली जा रही है।

यह यात्रा राज्यभर के युवाओं को जोड़ने की कोशिश है।

कन्हैया खुद बिहार के बेगूसराय से हैं और छात्र राजनीति से लेकर देशव्यापी आंदोलनों तक में सक्रिय रहे हैं।

NSUI की यह यात्रा राहुल गांधी की उपस्थिति से और अधिक प्रभावशाली बन जाएगी,

जिससे कांग्रेस का युवा वोट बैंक मज़बूत होने की संभावना है।

युवाओं के बीच बेरोजगारी, शिक्षा, परीक्षा व्यवस्था और सरकारी नौकरियों में अनियमितता जैसे मुद्दे गहराई से जुड़े हुए हैं।

कांग्रेस इन्हीं मुद्दों पर युवाओं को जोड़ने की रणनीति अपना रही है।

दलित वोट बैंक को साधने की तैयारी

बिहार की राजनीति में दलित वोट बैंक एक निर्णायक भूमिका निभाता है,

जो लगभग 15% है। कांग्रेस इस वर्ग को अपने साथ जोड़ने के लिए अब खुलकर मैदान में उतर आई है।

हाल ही में कांग्रेस ने राजेश कुमार को बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया है, जो एक दलित चेहरा हैं।

यह नियुक्ति न केवल सामाजिक प्रतिनिधित्व का संदेश देती है, बल्कि पार्टी की रणनीतिक सोच को भी दर्शाती है —

कि बिना सामाजिक न्याय और जातीय संतुलन के कोई भी दल बिहार में सफल नहीं हो सकता।

राजेश कुमार के नेतृत्व में कांग्रेस दलित समुदाय को संबोधित कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू कर चुकी है।

इसका उद्देश्य साफ है — कांग्रेस को ‘सवर्णों की पार्टी’ की छवि से निकालकर एक सर्वसमावेशी पार्टी के रूप में पेश करना।

महागठबंधन को मिलेगी मजबूती

राहुल गांधी की बिहार यात्रा का एक बड़ा राजनीतिक पहलू है —

महागठबंधन को मजबूती देना। बिहार में कांग्रेस, राजद, और अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में है, जिसका उद्देश्य भाजपा और एनडीए के मजबूत गढ़ को चुनौती देना है।

तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के बीच की नज़दीकी इस गठबंधन को और एकजुट बनाती है।

दोनों नेता अक्सर साझा मंच पर दिखते हैं, जिससे महागठबंधन की एकजुटता का संदेश मतदाताओं तक जाता है।

बिहार

भाजपा के खिलाफ आक्रामक रुख

राहुल गांधी अपनी हर यात्रा में भाजपा पर सीधा हमला करते हैं।

वे केंद्र सरकार को “कॉरपोरेट परस्त”, “युवाओं के विरोधी” और “संविधान विरोधी” करार देते हैं।

उनकी यह आक्रामक शैली अब कांग्रेस की पहचान बनती जा रही है।

बिहार की धरती पर राहुल का यह विरोधी तेवर विशेष महत्व रखता है,

क्योंकि यह राज्य हमेशा से ही राजनीतिक आंदोलनों का केंद्र रहा है।

संगठन में जान फूंकने की कवायद

राहुल गांधी की यात्रा केवल प्रचार तक सीमित नहीं है,

बल्कि वे संगठनात्मक ढांचे को मज़बूत करने पर भी ध्यान दे रहे हैं। राज्य के सभी कांग्रेस नेताओं को एक्टिव किया गया है, जिलों में सम्मेलन, प्रशिक्षण शिविर और बूथ स्तर की बैठकों का आयोजन हो रहा है।

इससे कांग्रेस को जमीनी मजबूती मिल रही है, जो लंबे समय से गायब थी।

निष्कर्ष: क्या कांग्रेस बना पाएगी वापसी की राह?

राहुल गांधी की लगातार यात्राएं और कांग्रेस की सक्रियता दिखाती है कि पार्टी बिहार को लेकर अब कोई भी मौका गंवाना नहीं चाहती। चाहे युवा हों, दलित वर्ग हो या महागठबंधन की एकता — कांग्रेस हर मोर्चे पर खुद को तैयार कर रही है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी की ये रणनीतियाँ और यात्राएं कांग्रेस को बिहार की राजनीति में फिर से एक अहम खिलाड़ी बना पाएंगी या नहीं। लेकिन इतना तो तय है कि इस बार कांग्रेस सिर्फ चुनाव लड़ने नहीं, बल्कि जीतने की मंशा से मैदान में उतरी है।

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