मालदीव के राष्ट्रपति ने की 15 घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस – रिकॉर्ड या नौटंकी?

15 घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस: क्या सच में कोई रिकार्ड बना या सिर्फ शो था?

मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू ने 15 घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रिकॉर्ड बनाया। जानिए इसका सच, विपक्ष की प्रतिक्रिया और जनता की राय।

भूमिका: जब राष्ट्रपति बन जाएं पत्रकारों से भी ज्यादा फुर्सत में

प्रेस

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने हाल ही में कुछ ऐसा कर डाला जो शायद ही दुनिया में किसी और नेता ने किया हो।

उन्होंने पूरे 15 घंटे तक लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस की—हां, आपने सही पढ़ा—पूरे 15 घंटे!

इस दौरान उन्होंने देश की आंतरिक और बाहरी नीतियों पर बात की,

भारत के साथ रिश्तों को लेकर नरमी दिखाई, लेकिन विपक्ष ने इसे एक और राजनीतिक स्टंट करार दिया।

अब सवाल ये उठता है—क्या यह वाकई एक ऐतिहासिक उपलब्धि है या फिर मीडिया का ध्यान खींचने की एक कोशिश? आइए इस पूरे मामले पर विस्तार से चर्चा करें।

इतिहास रचने की चाह या जिम्मेदारी से बचने की कला?

राष्ट्रपति का काम देश चलाना होता है, न कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठकर भाषणों की बौछार करना।

हालांकि पारदर्शिता और संवाद लोकतंत्र की आत्मा होते हैं,

लेकिन क्या 15 घंटे तक बोलते रहना इसे बेहतर बनाता है या बोरिंग?

लोग सोशल मीडिया पर चुटकी ले रहे हैं—

“राष्ट्रपति साहब ने तो जैसे रिकॉर्ड बनाने का ठेका ले लिया हो। क्या उन्हें वाकई कोई और काम नहीं है?”

क्या बोले राष्ट्रपति मुइज्जू?

1. भारत के साथ रिश्तों पर नरमी

राष्ट्रपति मुइज्जू ने पहले अपने कार्यकाल की शुरुआत में भारत के साथ कई समझौतों पर आपत्ति जताई थी।

लेकिन अब उन्होंने अपने रुख में नरमी दिखाते हुए कहा कि “भारत हमारे लिए एक अहम पड़ोसी है और हम दोस्ताना संबंध बनाए रखना चाहते हैं।”

इस बयान के बाद विपक्ष ने उन्हें निशाने पर लिया और कहा कि वे अपने पुराने वादों से मुकर रहे हैं।

2. घरेलू नीतियों पर फोकस

उन्होंने महंगाई, पर्यटन और युवाओं के रोजगार पर भी चर्चा की,

लेकिन आलोचकों का कहना है कि “बातों से पेट नहीं भरता, काम दिखना चाहिए।”

विपक्ष का हमला: दिखावा या संवाद?

विपक्षी पार्टियों ने मुइज्जू की प्रेस कॉन्फ्रेंस को एक “तमाशा” करार दिया। एक विपक्षी नेता ने कहा,

“देश की अर्थव्यवस्था गिर रही है और राष्ट्रपति जनाब रिकॉर्ड बनाने में व्यस्त हैं।”

वहीं कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह एक रणनीति हो सकती है जिससे जनता का ध्यान असली मुद्दों से हटाया जा सके।

जनता की प्रतिक्रिया: मिली-जुली राय

सोशल मीडिया पर जनता का रिएक्शन काफी दिलचस्प रहा:

एक यूज़र ने लिखा: “इतनी लंबी प्रेस कॉन्फ्रेंस? लग रहा है Netflix का नया शो आ गया है!”

एक और यूज़र ने कहा: “कम से कम वो सवालों के जवाब तो दे रहे हैं, हमारे नेता तो दिखाई ही नहीं देते।”

कुछ लोगों ने इसे पारदर्शिता की मिसाल बताया, वहीं कई लोगों ने इसे टाइम वेस्ट बताया।

विश्व रिकॉर्ड का क्या मतलब?

अगर वाकई यह दुनिया की सबसे लंबी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी, तो इसका रिकॉर्ड शायद गिनीज बुक में दर्ज हो। लेकिन क्या यह रिकॉर्ड उस राष्ट्रपति को महान बना देता है?

आज के समय में जब नेताओं से अपेक्षा होती है कि वे जनसेवा में सक्रिय रहें, तब सिर्फ बैठकर घंटों तक बोलते रहना असल नेतृत्व का प्रतीक नहीं माना जा सकता।

पत्रकारों की हालत: ‘पूछो मत’

सोचिए उन पत्रकारों के बारे में जो पूरे 15 घंटे तक इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठे रहे। उनके लिए ये दिन किसी इम्तिहान से कम नहीं था। कुछ तो मज़ाक में कहने लगे:

“हमने तो सोचा था प्रेस कॉन्फ्रेंस है, कौन जानता था ये मैराथन बन जाएगी।”

15 घंटे

राजनीति में शोमैनशिप बढ़ रही है?

आजकल नेता केवल निर्णय लेने के लिए नहीं, बल्कि लोकप्रियता और मीडिया प्रबंधन के लिए भी जाने जाते हैं।

मुइज्जू की यह प्रेस कॉन्फ्रेंस कहीं न कहीं इसी ट्रेंड को दर्शाती है। देश की समस्याओं से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है कि आप मीडिया में कितनी देर नजर आते हैं।

क्या भारत को फर्क पड़ता है?

भारत और मालदीव के रिश्तों में हमेशा से उतार-चढ़ाव रहा है। मुइज्जू के नरम रुख से संकेत मिलते हैं कि वे अपने पहले के विरोधी रवैये से पीछे हट रहे हैं। यह भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत हो सकता है, लेकिन “देखना यह है कि ये बातें जमीन पर कब उतरती हैं।”

निष्कर्ष: क्या 15 घंटे की बात में दम था?

राष्ट्रपति मुइज्जू की यह मैराथन प्रेस कॉन्फ्रेंस दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गई है। पर क्या वाकई इससे कुछ बदलेगा? क्या इससे जनता का विश्वास बढ़ेगा या यह सिर्फ एक प्रचार का तरीका था?

एक आम नागरिक के शब्दों में कहें तो:

“यही सोच रहे हैं कि अगर ये प्रेस कॉन्फ्रेंस थी, तो असली काम कब होगा?”

अंत में एक सवाल: क्या भारत के नेता भी ऐसा कर सकते हैं?

सोचिए अगर भारत में कोई नेता 15 घंटे तक प्रेस कॉन्फ्रेंस करे—क्या जनता उसे गंभीरता से लेगी या मीम्स बन जाएंगे?

क्योंकि हमारे यहां तो 15 मिनट भी प्रेस से रूबरू होना बड़ी बात मानी जाती है।

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