महंगाई डायन खाए जात बा: गैस के दामों में ₹50 की बढ़ोतरी से जनता पर टूटा एक और बोझ, विरोध में उतरे विपक्षी दल

महंगाई डायन खाए जात बा: गैस के दामों में ₹50 की बढ़ोतरी से जनता पर टूटा एक और बोझ,

विरोध में उतरे विपक्षी दल

सरकार ने घरेलू गैस सिलेंडर के दाम ₹50 बढ़ाए।

जनता में आक्रोश, विपक्ष ने फैसले को जनविरोधी बताया। उज्ज्वला लाभार्थी भी गैस छोड़ने को मजबूर।

नई दिल्ली: देश की आम जनता पहले से ही महंगाई की मार से कराह रही थी

और अब केंद्र सरकार ने एक बार फिर से आम लोगों की जेब पर सीधा हमला कर दिया है।

घरेलू गैस सिलेंडर के दामों में ₹50 की बढ़ोतरी की गई है, जिससे हर घर का बजट हिल गया है।

अब गैस सिलेंडर की कीमत बढ़कर ₹1,100 से ऊपर पहुंच गई है,

जो मध्यमवर्गीय और गरीब परिवारों के लिए एक बड़ा झटका है।

यह बढ़ोतरी ऐसे समय में हुई है जब पहले से ही खाद्य पदार्थों, दूध, सब्ज़ी और तेल के दाम आसमान छू रहे हैं।

जनता की मजबूरी बनी गैस पर खाना बनाना

आज के समय में ज्यादातर घरों में खाना बनाने के लिए गैस चूल्हे का ही इस्तेमाल होता है।

पहले की तरह लकड़ी, गोबर या कोयले से खाना बनाना अब संभव नहीं है, खासकर शहरी और कस्बाई इलाकों में।

ऐसे में गैस की बढ़ती कीमत आम आदमी की मजबूरी और बेबसी का सबब बन चुकी है।

किरण देवी, जो दिल्ली के एक स्लम इलाके में रहती हैं, बताती हैं –

“अब गैस लेने के लिए सोचना पड़ेगा। ₹50 बढ़े हैं, लेकिन कुल मिलाकर हर महीने का बजट ₹500 से ऊपर खिसक गया है।

गरीब का जीना मुश्किल हो गया है।”

सरकार के फैसले का विपक्ष ने किया कड़ा विरोध

सरकार के इस फैसले पर विपक्षी पार्टियों ने तगड़ा विरोध जताया है।

कांग्रेस, आप, राजद, तृणमूल कांग्रेस, और लेफ्ट पार्टियों ने केंद्र सरकार को

“जनविरोधी” करार देते हुए कहा है कि ये फैसला जनता को दबाने और पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए लिया गया है।

कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा,

“मोदी सरकार ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उन्हें आम आदमी की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं है।

गरीबों को गैस सब्सिडी देना तो दूर, अब उनके पेट पर भी लात मारी जा रही है।”

चूल्हे पर लौटने को मजबूर लोग

ग्रामीण इलाकों में जहां पहले उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन बांटे गए थे,

वहां अब लोग धीरे-धीरे वापस लकड़ी और उपलों से खाना बनाने पर मजबूर हो रहे हैं। गैस रिफिल करवाना अब उनकी क्षमता से बाहर होता जा रहा है। इससे न केवल स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है, बल्कि प्रदूषण भी बढ़ रहा है।

उज्ज्वला योजना की लाभार्थी सरस्वती देवी कहती हैं – “पहले सरकार ने गैस दी, अब उसके दाम ऐसे बढ़ा दिए कि इस्तेमाल ही नहीं कर पा रहे। फिर से धुएं में खाना बनाना पड़ रहा है।”

महंगाई

क्या चुनावी चाल है यह बढ़ोतरी?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला राज्यों में होने वाले चुनावों से पहले की गई चाल हो सकती है, जिसमें राजस्व जुटाने के उद्देश्य से ऐसी बढ़ोतरी की जाती है। लेकिन इसका असर सत्ता पक्ष को उल्टा पड़ सकता है क्योंकि जनता का गुस्सा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।

जनता पूछ रही है – “कब मिलेगा राहत?”

महंगाई, बेरोज़गारी और अब गैस की कीमतों में उछाल ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। लोग सोशल मीडिया पर भी सरकार के इस फैसले को लेकर मीम्स और आलोचनात्मक पोस्ट कर रहे हैं।

एक यूजर ने लिखा – “अब क्या सरकार कहेगी कि गैस का भी ‘अच्छे दिन’ आने वाले हैं?”

निष्कर्ष:

महंगाई डायन फिर एक बार आम जनता को निगलने को तैयार है। सवाल यही है कि सरकार कब लोगों को राहत देगी और क्या जनता इस बार सिर्फ चुपचाप सहन करेगी, या फिर विरोध की आवाज़ें और बुलंद होंगी?

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