पाकिस्तान ने सीज़फायर तोड़ा, भारत ने सेना को दी खुली छूट। ट्रंप की मध्यस्थता विफल? जानिए पूरी कहानी भारत-पाक संघर्ष की।
पाकिस्तान ने फिर किया सीज़फायर का उल्लंघन

भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर तनाव बढ़ गया है।
हाल ही में पाकिस्तान ने एकतरफा रूप से सीज़फायर तोड़ दिया, जिससे सीमावर्ती इलाकों में गोलीबारी शुरू हो गई।
यह घटना ऐसे समय पर हुई जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका और विशेष रूप से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता से एक शांति समझौता स्थापित हुआ था।
पाकिस्तान ने खुद ही सीज़फायर की रिक्वेस्ट की थी।
शाम 5 बजे से सीज़फायर लागू होना तय था, लेकिन पाकिस्तान ने महज़ 2 घंटे बाद ही इसे तोड़ दिया।
सोचने की बात है – ऐसे लोग कैसे भरोसेमंद हो सकते हैं?
इस हरकत से न केवल भारत को धोखा मिला, बल्कि डोनाल्ड ट्रंप जैसे वैश्विक नेता को भी इस प्रक्रिया में विश्वासघात का सामना करना पड़ा।
भारत को पहले से ही पाकिस्तान की नीयत पर संदेह था, और यह घटनाक्रम उसी संदेह को पुष्ट करता है।
भारत की सख्त प्रतिक्रिया: सेना को खुली छूट
सीज़फायर तोड़े जाने के तुरंत बाद भारत सरकार ने बीएसएफ और सेना को कड़ी कार्रवाई की अनुमति दे दी। सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि,
“आपको जितनी गोलियां चलानी हैं, चलाइए।”
इसके बाद भारतीय सेना ने सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया।
सेना ने न केवल जवाबी गोलीबारी की बल्कि रणनीतिक रूप से कई आतंकवादी ठिकानों को भी निशाना बनाया।
ड्रोन से हुआ हमला, भारत ने किया जवाबी प्रहार

पाकिस्तान की सेना ने जम्मू-कश्मीर के पवित्र स्थल वैष्णो देवी की ओर ड्रोन हमले की कोशिश की।
यह कदम पाकिस्तान की सोच और नापाक मंसूबों को दर्शाता है।
हालांकि, भारतीय सेना ने सतर्कता दिखाते हुए उस ड्रोन को हवा में ही नष्ट कर दिया, जिससे एक बड़ा खतरा टल गया।
भारत ने साफ कर दिया है कि वो अब सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं देगा,
बल्कि हर प्रकार की नापाक हरकत का निर्णायक जवाब देगा।
पाकिस्तानी नेतृत्व पर सवाल: सेना या सरकार, कौन ले रहा है निर्णय?
इस पूरे घटनाक्रम से यह सवाल फिर खड़ा हो गया है कि पाकिस्तान में असली सत्ता किसके पास है — वहां की सरकार या सेना?
एक ओर जहां पाकिस्तान के नेता शांति की बात करते हैं,
वहीं सेना लगातार संघर्ष को बढ़ावा दे रही है।
यह स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन पूरी तरह से प्रभावहीन हो चुका है, और असल नियंत्रण सेना के हाथों में है।
भारत की कूटनीतिक स्थिति मजबूत, दुनिया कर रही है समर्थन
भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पष्ट कर दिया है कि:
वह शांति का पक्षधर है,
लेकिन उसकी सहनशक्ति की भी एक सीमा है।
सीज़फायर उल्लंघन और आतंकवाद के समर्थन के खिलाफ भारत की कड़ी प्रतिक्रिया को कई वैश्विक शक्तियों का समर्थन मिल रहा है। अमेरिका, फ्रांस और जापान जैसे देश भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को जायज ठहरा चुके हैं।
ट्रंप की प्रतिक्रिया का इंतजार: क्या अब अमेरिका करेगा हस्तक्षेप?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि डोनाल्ड ट्रंप या अमेरिका इस नई परिस्थिति में क्या कदम उठाएंगे?
क्या ट्रंप फिर से मध्यस्थता की कोशिश करेंगे?
या फिर पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाने की वकालत करेंगे?
अभी तक ट्रंप की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन भारत के समर्थक माने जाने वाले ट्रंप से कड़ा रुख अपनाने की उम्मीद की जा रही है।
आम जनता को हो रहा है सबसे ज़्यादा नुकसान
हर बार की तरह इस बार भी भारत और पाकिस्तान के आम लोग ही संघर्ष का सबसे अधिक खामियाजा भुगत रहे हैं।
सीमा पर रहने वाले नागरिकों को:
अपने घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ रहा है,
बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है,
रोज़मर्रा की जिंदगी पूरी तरह से प्रभावित हो रही है।
युद्ध या संघर्ष से न तो भारत को फायदा होता है, न पाकिस्तान को — नुकसान केवल जनता को होता है।
निष्कर्ष: क्या टिक पाएगी शांति?
पाकिस्तान की तरफ से बार-बार किए जा रहे सीज़फायर उल्लंघन, ड्रोन हमले और आतंकवाद के समर्थन से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि शांति की संभावना कमज़ोर हो रही है।
भारत अब अपने कड़े रुख पर अडिग है और पाकिस्तान की हर नापाक हरकत का जवाब देने को तैयार है।
डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेता की मध्यस्थता और अंतरराष्ट्रीय दबाव शायद फिर से शांति की ओर ले जाए, लेकिन पाकिस्तान की सोच नहीं बदली तो यह संघर्ष एक बार फिर बड़े युद्ध का रूप ले सकता है।