भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध भारत की शर्तों पर रुका। डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता ने तनाव को टाल दिया। क्या अब शांति टिकेगी?

भूमिका: जब दक्षिण एशिया में बादल थे युद्ध के
पिछले कुछ दिनों से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था।
सीमा पर गोलीबारी, हवाई हमले और युद्ध जैसी तैयारी ने आम नागरिकों के मन में डर और अनिश्चितता भर दी थी।
लेकिन ठीक उसी समय एक बड़ा कूटनीतिक घटनाक्रम हुआ —
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की और स्थिति को संभालने में निर्णायक भूमिका निभाई।
भारत की स्पष्ट नीति: पहले आतंक खत्म, फिर संवाद
भारत ने शुरू से ही स्पष्ट कर दिया था कि वह युद्ध नहीं चाहता,
लेकिन अपनी सीमाओं और नागरिकों की सुरक्षा के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगा।
भारत की सैन्य कार्रवाई केवल आतंकी ठिकानों तक सीमित थी, जो पाकिस्तान की जमीन से संचालित हो रहे थे।
भारत के विदेश मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान में कहा,
“हम पाकिस्तान से सिर्फ एक ही बात चाहते हैं — आतंक का समर्थन बंद करो, तभी शांति संभव है।”
भारत की इन शर्तों के बिना कोई बातचीत या युद्धविराम स्वीकार नहीं था।
सीज़फायर की पृष्ठभूमि: पाकिस्तान पर दबाव और अमेरिकी दखल
जब हालात बेकाबू होते जा रहे थे, तब अमेरिका ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय भूमिका निभाई।
खासकर डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने कूटनीतिक अनुभव और व्यक्तिगत नेटवर्क का उपयोग करते हुए पाकिस्तान पर दबाव डाला
कि वह भारत की शर्तों को माने और युद्ध विराम के लिए तैयार हो।
यह पहली बार नहीं है जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाक के बीच दखल दिया हो।
अपने कार्यकाल के दौरान भी उन्होंने कश्मीर मुद्दे को सुलझाने की इच्छा जताई थी,
हालांकि भारत ने हमेशा इसे द्विपक्षीय मसला माना।
इस बार ट्रंप ने पर्दे के पीछे रहकर सैन्य और राजनीतिक दोनों स्तरों पर काम किया।
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और रक्षा विभाग ने पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से चेतावनी दी कि अगर उसने आतंक का समर्थन जारी रखा,
तो उसे सैन्य और आर्थिक रूप से भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

भारत की शर्तों पर हुआ सीज़फायर
पाकिस्तान, जो शुरुआत में आक्रामक था, अंततः झुक गया।
अंतरराष्ट्रीय दबाव, घरेलू अस्थिरता और भारत की सैन्य तैयारी के आगे उसे पीछे हटना पड़ा।
सीज़फायर की घोषणा एक संयुक्त बयान के माध्यम से हुई, जिसमें साफ तौर पर बताया गया कि यह भारत की शर्तों पर आधारित है,
जिसमें आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई और भविष्य में कोई उकसावे वाली हरकत न करना शामिल है।
यह एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि पहली बार पाकिस्तान ने बिना किसी दिखावे के भारत की शर्तों को स्वीकार किया और युद्ध से पीछे हटा।
डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका: एक बार फिर ‘डील मेकर’
डोनाल्ड ट्रंप ने इस पूरे घटनाक्रम में एक तरह से ‘शांति सौदागर’ की भूमिका निभाई।
उनकी छवि हमेशा से ही एक मजबूत सौदेबाज़ की रही है, और इस बार भी उन्होंने वही छवि पेश की।
ट्रंप ने सीज़फायर के बाद एक बयान में कहा,
“मैं खुश हूं कि मैंने एक बार फिर दुनिया को युद्ध से बचाने में भूमिका निभाई।
भारत और पाकिस्तान दोनों महान देश हैं और उन्हें शांति के साथ आगे बढ़ना चाहिए।”
उनके इस बयान ने वैश्विक मीडिया का ध्यान खींचा और एक बार फिर उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर चर्चा का विषय बना दिया।

पाकिस्तान की पुरानी रणनीति और झूठ का पर्दाफाश
भारत ने यह भी साफ किया कि उसने पाकिस्तान की किसी मस्जिद या धार्मिक स्थल को निशाना नहीं बनाया।
पाकिस्तान द्वारा फैलाए गए ऐसे झूठे आरोपों को उपग्रह तस्वीरों और अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स ने खारिज कर दिया।
पाकिस्तान ने हमेशा की तरह इस बार भी अपने झूठ से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भ्रमित करने की कोशिश की, लेकिन इस बार उसका यह खेल नहीं चल पाया।
भारत ने संयम के साथ काम लिया और दुनिया को दिखा दिया कि वह एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति है जो केवल आत्मरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होता है।
अमेरिका की नीति: शांति बनाए रखने का प्रयास या रणनीतिक चाल?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की यह दखल सिर्फ शांति के लिए नहीं थी, बल्कि उसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व बनाए रखना भी था। चीन के बढ़ते प्रभाव और रूस की सक्रियता को देखते हुए अमेरिका नहीं चाहता कि भारत-पाक युद्ध से पूरा क्षेत्र अस्थिर हो।
फिर भी, यह मानना पड़ेगा कि अगर ट्रंप ने पहल न की होती, तो स्थिति और बिगड़ सकती थी।
अब आगे क्या?
सीज़फायर भले ही हो गया हो, लेकिन असली परीक्षा अब शुरू होती है। क्या पाकिस्तान अपनी पुरानी आदतें छोड़ेगा? क्या वह आतंकवादियों के खिलाफ वास्तव में कार्रवाई करेगा? और क्या भारत को फिर से सीमा पर तनाव का सामना करना पड़ेगा?
इन सभी सवालों का जवाब समय देगा, लेकिन भारत ने एक बार फिर दुनिया के सामने अपनी छवि एक शांतिप्रिय, सशक्त और जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत की है।
निष्कर्ष: भारत की कूटनीति और ट्रंप की मध्यस्थता ने टाली जंग
डोनाल्ड ट्रंप की कूटनीतिक पहल और भारत की सख्त लेकिन संतुलित नीति ने इस बार युद्ध को टाल दिया। यह घटना न सिर्फ दक्षिण एशिया के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सबक है कि बातचीत और दृढ़ इच्छाशक्ति से बड़े से बड़ा संकट टाला जा सकता है।
अब बारी पाकिस्तान की है कि वह साबित करे कि उसने वास्तव में कुछ सीखा है, या फिर इतिहास खुद को दोहराएगा।