पिछले कई दिनों से बारिश का मौसम बन रहा था।
बादलों का जमावड़ा, ठंडी हवाएँ और बीच-बीच बारिश और हल्की फुहारें माहौल को अलग ही बना रही थीं।
लोग कह रहे थे कि अब गर्मी थोड़ी थमेगी, और सच में ऐसा ही हुआ।
आज, जैसे ही सुबह हुई, मौसम ने अचानक करवट ली।
घने बादल छा गए और तेज बारिश शुरू हो गई। देखते ही देखते ओले गिरने लगे —
छोटे-छोटे नहीं, बल्कि बड़े-बड़े ओले, जो धरती से टकराते ही फसलों को चकनाचूर करने लगे।
शहरों और कस्बों में रहने वाले लोग इस बदलाव से खुश थे।
उनके लिए यह मौसम एक राहत बनकर आया था — तपती गर्मी से छुटकारा, ठंडी फिजा, चाय और पकौड़ों का मजा।
सोशल मीडिया पर ‘सुहाना मौसम‘ जैसे पोस्ट छा गए।
लेकिन गाँवों में हालात कुछ और ही थे।

जहाँ एक ओर आम लोग मौसम का आनंद ले रहे थे, वहीं खेतों में किसानों के अरमान चूर हो रहे थे।
गेहूं, चना, सरसों जैसी रबी फसलें कटने के बिलकुल नजदीक थीं।
कुछ जगहों पर कटाई शुरू भी हो गई थी, लेकिन अधिकतर खेतों में फसल अभी तैयार खड़ी थी।
ओलों की बौछार ने इन फसलों को तहस-नहस कर दिया।
पके हुए दाने जमीन पर बिखर गए, पौधे टूट गए, और मेहनत से सींचे सपने मिट्टी में मिलते दिखे।
किसानों का दर्द कोई नहीं समझता
जिनके पास खेत नहीं हैं, उनके लिए यह बस एक मौसम की खबर हो सकती है।
लेकिन एक किसान के लिए, यह पूरा साल भर की मेहनत और उम्मीदों का सवाल होता है। हर बीज बोते वक्त किसान अपनी किस्मत भी बोता है। वह दिन-रात मेहनत करता है, कभी सूखे से लड़ता है, तो कभी बेमौसम बरसात से।
आज जब आसमान से ओले बरस रहे थे, तब किसान बस अपने खेतों की ओर दौड़ते हुए देख रहे थे — लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे। फसल को बचाने का कोई तरीका नहीं था। भीगी आँखों से वे सिर्फ अपनी मेहनत बर्बाद होते देख रहे थे।
सरकार से उम्मीदें और चुनौतियाँ
अब सवाल उठता है कि क्या सरकार समय पर किसानों की मदद कर पाएगी? हर साल प्राकृतिक आपदाओं के बाद मुआवजे की घोषणाएँ तो होती हैं, लेकिन राहत राशि इतनी कम होती है कि वह किसानों के जख्मों पर मरहम नहीं लगा पाती।
वास्तव में जरूरत इस बात की है कि किसानों के लिए बीमा योजनाएँ प्रभावी तरीके से लागू हों, और मुआवजा तत्काल मिले।
मौसम बदल रहा है, सोच भी बदलनी होगी

आज का यह घटनाक्रम सिर्फ एक बारिश या ओलों की घटना नहीं है। यह एक संकेत है कि मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण अब मौसम और भी अनिश्चित होता जा रहा है। किसानों को तकनीकी मदद, बेहतर बीज और फसल बीमा जैसी सुविधाओं से लैस करना होगा ताकि वे इस तरह की आपदाओं का सामना कर सकें।
अंत में एक सवाल
जब भी मौसम करवट लेता है, शहरों के लोग बस मौसम का मजा लेने में व्यस्त हो जाते हैं। लेकिन क्या हम कभी उन किसानों के बारे में सोचते हैं, जिनकी ज़िंदगी इस मौसम पर निर्भर करती है?
शायद वक्त आ गया है कि हम मौसम के साथ अपनी संवेदनाएँ भी बदलें।
