शेख मुजीब की बेटी शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को बांग्लादेश में प्रतिबंधित कर दिया गया है। देश में कट्टरपंथ का बढ़ता प्रभाव और लोकतंत्र पर मंडराते खतरे की पूरी जानकारी पढ़ें।

‘जिसके पिता ने बांग्लादेश बनवाया, आज उसी की बेटी की पार्टी पर प्रतिबंध’
बांग्लादेश इन दिनों एक गंभीर राजनीतिक और वैचारिक संकट के दौर से गुजर रहा है।
हाल ही में ऐसी खबरें सामने आई हैं कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी, अवामी लीग, जो कि देश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की विरासत को आगे बढ़ा रही थी,
अब खुद अपनी राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
देश की राजनीति में आज हालात ऐसे बन गए हैं कि कट्टरपंथी ताकतें मुख्यधारा की राजनीति पर हावी हो रही हैं,
और लोकतांत्रिक मूल्यों को दरकिनार किया जा रहा है।
शेख मुजीबुर रहमान: बांग्लादेश के निर्माता
1971 में पाकिस्तान से आज़ादी के संघर्ष के दौरान शेख मुजीब ने बांग्लादेश के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई।
वे “बांग्ला बंधु” (बांग्लादेश का दोस्त) के नाम से मशहूर हुए।
उनकी पार्टी अवामी लीग ने धर्मनिरपेक्षता, प्रजातंत्र और सामाजिक न्याय को अपना मूल सिद्धांत बनाया। उनकी बेटी शेख हसीना ने इसी विचारधारा को आगे बढ़ाया।
शेख हसीना: विकास बनाम विपक्ष का दमन
शेख हसीना की सरकार ने बांग्लादेश को आर्थिक रूप से तेज़ी से आगे बढ़ाया।
उन्होंने महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, और आधारभूत संरचना में बड़े सुधार किए।
लेकिन उन पर आरोप भी लगते रहे कि उन्होंने विपक्ष को दबाया,
मीडिया को नियंत्रित किया और सत्ता को केंद्रीकृत किया।
हाल ही में खबरें सामने आईं कि शेख हसीना की सरकार को कुछ धार्मिक व राजनीतिक गुटों की ओर से भारी विरोध झेलना पड़ा, और उन पर “इस्लाम विरोधी नीतियों” का आरोप लगाया गया।
इसी दबाव में अवामी लीग को कई जगहों पर प्रतिबंधित कर दिया गया, या उनके कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया।
क्या बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों का बढ़ता प्रभाव?
आज बांग्लादेश में स्थिति यह हो गई है कि वहां धर्मनिरपेक्षता की बात करना ही अपराध बनता जा रहा है।
चरमपंथी संगठनों का प्रभाव केवल समाज तक ही सीमित नहीं,
बल्कि न्यायपालिका और प्रशासन पर भी छाया हुआ दिख रहा है।
धार्मिक कठमुल्लाओं के इशारों पर फैसले लिए जा रहे हैं, स्कूलों में धार्मिक एजेंडा थोपा जा रहा है,
और प्रगतिशील विचारकों को जेल में डाला जा रहा है।
ऐसा प्रतीत होता है कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत बांग्लादेश को एक धार्मिक राष्ट्र की दिशा में मोड़ा जा रहा है।
मो. युनूस के बढ़ते प्रभाव की चर्चा

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनूस का नाम भी इस संकट में आ रहा है।
युनूस, जो ‘ग्रेमीन बैंक‘ के संस्थापक हैं और सामाजिक उद्यमिता के लिए जाने जाते हैं, अब बांग्लादेश की राजनीति में एक नई शक्ति के रूप में उभर रहे हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि उनकी छवि को धार्मिक और राजनीतिक ताकतें अपने पक्ष में भुना रही हैं।
शेख हसीना की सरकार और युनूस के बीच पहले से ही तनाव रहा है।
युनूस पर आर्थिक अनियमितताओं के आरोप लगे हैं, और शेख हसीना सरकार ने उनके खिलाफ जांच भी शुरू की थी।
परंतु अब जिस तरह उन्हें ‘राजनीतिक संत’ के रूप में पेश किया जा रहा है, वह आशंका उत्पन्न करता है कि कहीं वे भी किसी एजेंडे के तहत आगे नहीं बढ़ रहे।
बांग्लादेश में लोकतंत्र का भविष्य: चिंता और सवाल
बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति को देखकर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वहां लोकतंत्र का अंत हो रहा है?
शेख हसीना, जिनकी पार्टी ने दशकों तक देश को स्थिरता और विकास दिया, आज राजनीतिक हाशिए पर धकेली जा रही है।
धर्मनिरपेक्षता, जिसने बांग्लादेश को एक उदार राष्ट्र के रूप में खड़ा किया था, अब कमजोर पड़ रही है।
यदि कट्टरपंथी ताकतें इसी तरह से राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करती रहीं,
तो यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
क्या शेख हसीना ने सोचा था ऐसा दिन भी आएगा?
एक भावनात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह सचमुच विडंबना है कि जिस नेता की पार्टी ने देश को बनाया,
आज वही पार्टी प्रतिबंध का सामना कर रही है।
शेख हसीना, जिन्होंने अपने पिता के सपनों को जीवंत किया,
शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि एक दिन उनकी पार्टी को ‘देशद्रोही’ करार दिया जाएगा।
यह न केवल उनके राजनीतिक जीवन पर आघात है, बल्कि पूरे राष्ट्र की आत्मा पर भी चोट है।
भारत और वैश्विक समुदाय की भूमिका
भारत ने हमेशा बांग्लादेश को एक रणनीतिक साझेदार माना है।
चाहे 1971 का युद्ध हो या हाल के वर्षों में सीमा सुरक्षा, व्यापार और आतंकवाद विरोधी सहयोग—भारत और बांग्लादेश ने साथ मिलकर कई मुद्दों पर काम किया है।
भारत की चुप्पी इन घटनाओं पर गंभीर चिंता का विषय है।
यदि बांग्लादेश कट्टरपंथ की ओर मुड़ता है, तो इसका असर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों, शरणार्थी संकट और सुरक्षा व्यवस्था पर भी पड़ सकता है।
निष्कर्ष: क्या बांग्लादेश अपनी आत्मा खो रहा है?
बांग्लादेश की राजनीति आज ऐसे मोड़ पर है जहां विचारधारा, लोकतंत्र और भविष्य की दिशा तीनों संकट में हैं।
शेख हसीना की पार्टी पर बैन लगना केवल एक राजनीतिक घटना नहीं,
बल्कि पूरे राष्ट्र की पहचान और मूल्यों पर हमला है।
देश को चाहिए था कि वह अपने इतिहास से सीखे, लेकिन लगता है अब वहां इतिहास को मिटाने की कोशिश की जा रही है।
“जिस पिता ने देश बनाया, आज उसकी बेटी को राजनीति से मिटाने की कोशिश की जा रही है”—यह केवल बयान नहीं, बांग्लादेश की आज की त्रासदी है।
