मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सभी चीनी आयातों पर 104% शुल्क लगाने की घोषणा की,
जिससे अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध और अधिक तेज़ हो गया है।
यह फैसला उस समय आया जब दोनों देश एक “उच्च जोखिम वाले टकराव” में उलझे हुए हैं और कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है।
बीजिंग ने अमेरिका की आक्रामक नीतियों का “अंत तक डटकर मुकाबला” करने की बात कही है।

शुरुआत में ट्रंप प्रशासन ने चीनी आयात पर 34% अतिरिक्त टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा था।
लेकिन इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर 34% शुल्क लगा दिया।
इसके बाद अमेरिका ने और कड़ा कदम उठाते हुए अतिरिक्त 50% शुल्क लगाने की घोषणा कर दी।
इससे पहले फरवरी और मार्च में जो शुल्क लगाए गए थे, उन्हें भी जोड़ दिया जाए,
तो ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में चीनी आयातों पर कुल मिलाकर 104% तक टैरिफ बढ़ाया गया है।
यह अब तक की सबसे सख्त और निर्णायक व्यापार नीति मानी जा रही है।
दुनिया की दो सबसे बड़ी महाशक्तियों—अमेरिका और चीन—एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं।
इस बार विवाद की बड़ी वजह बना है अमेरिका द्वारा चीन पर लगाया गया 104% का टैरिफ।
इसके जवाब में चीन ने अमेरिका को सीधी धमकी दी है, जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति और वैश्विक व्यापार में एक नया मोड़ ला सकता है।
आइए जानते हैं इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि, कारण और इसका असर।
अमेरिका ने लगाया 104% टैरिफ
हाल ही में अमेरिका ने चीन से आयात किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण उत्पादों—
जैसे स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल्स और वाहन उपकरणों—पर 104% टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा की।
अमेरिका का तर्क है कि चीन की कंपनियाँ अमेरिकी बाजार में अत्यधिक सस्ते उत्पाद भेजकर अमेरिकी उद्योगों को नुकसान पहुँचा रही हैं।
इस टैरिफ का मकसद चीन के अनुचित व्यापार व्यवहार पर रोक लगाना और घरेलू उत्पादकों को बढ़ावा देना है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि यह फैसला “देश की आर्थिक सुरक्षा और भविष्य की तकनीकी प्रतिस्पर्धा” को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
चीन की तीखी प्रतिक्रिया
अमेरिका के इस कदम से चीन पूरी तरह नाराज़ हो गया है।
चीनी विदेश मंत्रालय ने इस फैसले को “आर्थिक हमले की तरह” बताया और चेतावनी दी कि
यदि अमेरिका ने इस प्रकार के टैरिफ और पाबंदियाँ जारी रखीं, तो चीन भी कड़ा जवाब देगा।
चीन ने स्पष्ट कहा कि यह कदम वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन (WTO) के नियमों का उल्लंघन है
और इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था कमजोर हो सकती है।
अमेरिका-चीन तनाव का इतिहास
यह कोई पहला मौका नहीं है जब अमेरिका ने चीन के खिलाफ टैरिफ लगाया हो।
ट्रंप प्रशासन के दौरान व्यापार युद्ध की शुरुआत हुई थी, जिसमें दोनो देशों ने एक-दूसरे के उत्पादों पर अरबों डॉलर के टैरिफ लगाए थे।
लेकिन इस बार 104% का टैरिफ अब तक का सबसे ऊँचा और कठोर कदम माना जा रहा है।
इससे पहले अमेरिका ने Huawei जैसी चीनी कंपनियों पर तकनीकी प्रतिबंध लगाए थे,
और अब इस टैरिफ से चीन की औद्योगिक और निर्यात नीति को सीधी चुनौती दी जा रही है।
वैश्विक प्रभाव
अमेरिका और चीन के बीच इस तरह के टैरिफ युद्ध का असर केवल इन दोनों देशों पर ही नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इससे निम्नलिखित प्रभाव देखने को मिल सकते हैं:
कीमतों में बढ़ोतरी: अमेरिकी बाजार में चीनी उत्पाद महंगे होने से उपभोक्ताओं पर सीधा असर पड़ेगा।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित: विशेष रूप से तकनीकी उत्पादों की सप्लाई में रुकावटें आ सकती हैं।
अन्य देशों पर दबाव: कई छोटे देश इस संघर्ष के बीच फँस सकते हैं और उन्हें अपने व्यापारिक निर्णयों में बदलाव लाना पड़ सकता है।
चीन की रणनीति क्या हो सकती है?
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अमेरिका के इस कदम का जवाब देने के लिए कई तरीके अपना सकता है, जैसे:
अमेरिकी उत्पादों पर काउंटर-टैरिफ लगाना
अमेरिकी कंपनियों को चीन में काम करने में दिक्कतें देना
डिप्लोमैटिक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका की आलोचना करना

अमेरिका द्वारा चीन पर 104% का टैरिफ लगाना एक बड़ा और निर्णायक कदम है, जिसने दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद तनाव को और अधिक गहरा कर दिया है। इस कदम के दूरगामी परिणाम होंगे, जो न केवल दोनो देशों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करेंगे, बल्कि पूरी दुनिया के व्यापार और राजनीतिक समीकरण को भी हिला सकते हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में चीन इस चुनौती का कैसे जवाब देता है और क्या दोनों देश कूटनीतिक स्तर पर किसी समाधान तक पहुँचते हैं या यह व्यापार युद्ध और भी विकराल रूप लेता है।