जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों में जुबानी जंग: तुलबुल परियोजना को लेकर सोशल मीडिया पर सियासी टकराव

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच तुलबुल परियोजना को लेकर सोशल मीडिया पर विवाद।

जानिए क्या है यह परियोजना, क्यों हुआ विवाद और क्या हो सकते हैं इसके राजनीतिक और कूटनीतिक परिणाम।

भूमिका: जल विवाद के बीच सियासी गर्मी

जम्मू-कश्मीर

भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही तनावपूर्ण स्थिति के बीच, जम्मू-कश्मीर की सियासत भी गर्म हो गई है।

शुक्रवार को एक सार्वजनिक विवाद उस समय सामने आया जब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला

और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के बीच तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी बहस हुई।

तुलबुल परियोजना क्या है?

संक्षिप्त पृष्ठभूमि

तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट, जिसे वुलर बैराज के नाम से भी जाना जाता है, जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में झेलम नदी पर प्रस्तावित एक जल-नियंत्रण परियोजना है।

इसका उद्देश्य नौपरिवहन सुविधा को बेहतर बनाना और सिंचाई तथा पेयजल के लिए पानी को संरक्षित करना है।

Indus जल संधि और परियोजना पर प्रभाव

यह परियोजना लंबे समय से Indus जल संधि के तहत विवादों में रही है।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई इस संधि के तहत झेलम, सिंधु और चेनाब नदियों का बहाव पाकिस्तान को सौंपा गया था,

जबकि रावी, ब्यास और सतलज भारत के अधिकार में आए।

तुलबुल परियोजना को 1987 में पाकिस्तान के विरोध के कारण रोक दिया गया था।

इस परियोजना का पाकिस्तान से क्या संबंध है?

इस परियोजना का पाकिस्तान से संबंध इंदस जल संधि (Indus Waters Treaty) के कारण है,

जो भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई थी।

इस संधि के अनुसार, भारत को रावी, ब्यास और सतलुज नदियों पर पूर्ण अधिकार मिला,

जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु नदियों का अधिकार पाकिस्तान को दिया गया।

तुलबुल परियोजना झेलम नदी पर है, जो पाकिस्तान जाती है।

इसलिए पाकिस्तान का कहना है कि भारत इस परियोजना के जरिए झेलम नदी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है,

जिससे उसे पानी की आपूर्ति पर असर पड़ सकता है।

पाकिस्तान ने 1987 में इस परियोजना का विरोध किया था, जिसके बाद भारत ने इसे रोक दिया।

विवाद की शुरुआत: उमर अब्दुल्ला की टिप्पणी

तुलबुल परियोजना को पुनर्जीवित करने की मांग

हाल ही में भारत द्वारा Indus जल संधि को निलंबित करने की घोषणा के बाद, उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया पर मांग की कि तुलबुल परियोजना को फिर से शुरू किया जाना चाहिए।

उन्होंने इसे जम्मू-कश्मीर के हित में बताया और कहा कि यह राज्य के आर्थिक और परिवहन बुनियादी ढांचे को मजबूती देगा।

राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में बयान

उमर अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि जब पाकिस्तान भारत के खिलाफ खुलेआम आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है,

ऐसे में भारत को अपनी जल नीतियों पर पुनर्विचार करने का पूरा अधिकार है।

महबूबा मुफ्ती का तीखा जवाब

“उकसावे वाली नीति” कहकर किया विरोध

जम्मू-कश्मीर

महबूबा मुफ्ती ने उमर अब्दुल्ला के सुझाव पर तीखी प्रतिक्रिया दी।

उन्होंने कहा कि इस समय जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है, ऐसे में इस तरह की परियोजनाएं और बयानबाजी आग में घी डालने जैसा है।

उन्होंने इसे “उकसावे वाला कदम” बताया और कहा कि इससे घाटी में और अशांति फैल सकती है।

शांति बनाए रखने की अपील

महबूबा मुफ्ती ने कहा कि इस समय जरूरत शांति और संयम की है, न कि ऐसे बयानों की जो क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा दें।

उन्होंने केंद्र सरकार से भी अपील की कि वह दोनों देशों के बीच वार्ता की प्रक्रिया को फिर से शुरू करे।

उमर अब्दुल्ला का पलटवार

“सस्ती लोकप्रियता” और “पाकिस्तान को खुश करने की कोशिश” का आरोप

महबूबा मुफ्ती के बयान पर उमर अब्दुल्ला ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि महबूबा मुफ्ती सिर्फ “सस्ती लोकप्रियता” हासिल करना चाहती हैं और “कुछ लोगों को पाकिस्तान में खुश करने” की कोशिश कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब देश की सुरक्षा और हितों की बात हो रही है,

राजनीतिक अंक प्राप्त करने की कोशिश निंदनीय है।

विकास बनाम राजनीति की बहस

उमर अब्दुल्ला ने आगे कहा कि तुलबुल परियोजना को पुनः आरंभ करना केवल राजनीतिक मसला नहीं

बल्कि जम्मू-कश्मीर के विकास और स्थायित्व से जुड़ा मुद्दा है।

उन्होंने महबूबा पर आरोप लगाया कि वह केवल अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए राज्य की भलाई के खिलाफ बयान दे रही हैं।

विश्लेषण: इस विवाद के मायने क्या हैं?

जल और राजनीति का टकराव

इस विवाद ने एक बार फिर दिखा दिया है कि किस तरह जल जैसे रणनीतिक संसाधन भी राजनीतिक टकराव का हिस्सा बन जाते हैं।

जहां एक ओर उमर अब्दुल्ला इसे राज्य के विकास से जोड़ते हैं,

वहीं महबूबा मुफ्ती इसे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ाने वाला कदम मानती हैं।

सार्वजनिक बहस बनाम राजनैतिक परिपक्वता

सोशल मीडिया पर इस तरह की बहसें दर्शाती हैं कि राजनीतिक दल अब नीतिगत मामलों पर भी सार्वजनिक मंच पर खुलकर टकरा रहे हैं।

हालांकि, इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या इस तरह की सार्वजनिक बहसें राज्य की स्थिरता

और जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए की जाती हैं या सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए?

भारत-पाक तनाव और indus संधि का भविष्य

indus जल संधि पर पुनर्विचार की मांग

भारत सरकार द्वारा संधि निलंबित करने की घोषणा के बाद यह स्वाभाविक है कि अब भारत अपनी नदियों पर अधिक नियंत्रण चाहता है।

ऐसे में तुलबुल परियोजना को पुनः शुरू करने की मांग ने राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया की संभावना

अगर भारत वास्तव में तुलबुल परियोजना को आगे बढ़ाता है, तो पाकिस्तान की तीखी प्रतिक्रिया आना तय है।

इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी गूंज सुनाई दे सकती है।

निष्कर्ष: राज्यहित या सियासी स्वार्थ?

इस पूरे विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में विकास से जुड़े मुद्दे भी राजनीति की भेंट चढ़ जाते हैं।

जहां एक ओर उमर अब्दुल्ला राज्य के हितों की बात कर रहे हैं,

वहीं महबूबा मुफ्ती क्षेत्रीय शांति को प्राथमिकता दे रही हैं।

लेकिन सवाल यही है कि क्या यह बहस वास्तव में राज्य के विकास और सुरक्षा के लिए है, या फिर सिर्फ एक राजनीतिक ‘दिखावा’?

राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे इस तरह के गंभीर मुद्दों पर परिपक्वता के साथ बात करें और जनता के हितों को केंद्र में रखें,

न कि सस्ती लोकप्रियता के लिए बयानबाजी करें।

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