भूमिका: हर युग की अपनी एक विशेषता रही है — सत्य और असत्य, धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष। सतयुग में धर्म की विजय सर्वोच्च थी, त्रेता युग में अधर्म ने सिर उठाया, द्वापर में छल और भ्रम बढ़े और फिर आया कलयुग — जहां सब कुछ बदला। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव यह था कि “शैतान” या “राक्षस”[कलयुग] अब किसी जंगल या लंका में नहीं रहते, वो हमारे बीच छुपे बैठे हैं।
त्रेता और द्वापर युग के राक्षस
त्रेता युग में रावण, कुंभकरण, मारीच जैसे राक्षस थे — बलशाली, तपस्वी और मायावी। उनके पास शक्ति थी, पर अहंकार और अधर्म ने उन्हें पतन की ओर ढकेल दिया।

द्वापर में कंस, शकुनि, दुर्योधन जैसे लोग थे — जो सत्ता, स्वार्थ और छल से सत्य का दमन करते थे।
इन युगों में राक्षसों की पहचान साफ़ थी। उनके पास अपनी सेनाएँ थीं, अपने महल थे और खुला विरोध होता था। देवताओं से युद्ध आम बात थी।
तो क्या कलयुग में राक्षस नहीं हैं?
हैं। लेकिन उनका रूप, भाषा, तरीका और पहचान बदल चुकी है।
आज का राक्षस न ही दस सिर वाला है, न ही जंगलों में छुपा बैठा है।
कलयुग का डेविल मनुष्यता के वस्त्र में, आधुनिकता के मुखौटे में, और डिजिटल दुनिया के पीछे छिपा है।
इतिहास में कलयुगी प्रवृत्तियाँ
जब हम इतिहास को निष्पक्ष दृष्टि से देखते हैं, तो हमें पता चलता है कि हर धर्म, जाति, या समुदाय में ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने लोभ, सत्ता और स्वार्थ के लिए अधर्म का सहारा लिया।
मध्यकालीन आक्रमणकारियों ने सत्ता के लिए धर्म को हथियार बनाया।
औपनिवेशिक शक्तियों ने व्यापार के नाम पर लूट की और जातीय भेदभाव फैलाया।
राजाओं और साम्राज्यों ने अपनी सत्ता की भूख में लाखों निर्दोषों का खून बहाया।
लेकिन क्या केवल यही “शैतान” थे?
कलयुग का असली शैतान कौन है?
1. जो नफरत फैलाए — जो धर्म, जाति, भाषा या रंग के नाम पर लोगों को बाँटे और लड़ाए।
2. जो लालच का पुजारी हो — जिसके लिए नैतिकता से बड़ा पैसा है, जो अपने स्वार्थ के लिए किसी की भी कुर्बानी दे दे।
3. जो मासूमों का बचपन छीन ले — बाल मज़दूरी, मानव तस्करी, शोषण करने वाले आज के सबसे खतरनाक डेविल हैं।
4. जो सच को दबाए और झूठ को बेचे — चाहे वो नेता हो, मीडिया हाउस हो या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर।
5. जो विज्ञान, धर्म और शिक्षा का दुरुपयोग करे — धर्म के नाम पर हिंसा, विज्ञान के नाम पर विनाश और शिक्षा के नाम पर ब्रेनवॉश।
शैतान अब सिर्फ़ जंगल में नहीं, सिस्टम में है
अदालतों में देरी — न्याय न मिलने देना भी अधर्म है।
अस्पतालों में घोटाले — जीवन रक्षक सुविधाओं को पैसा कमाने का जरिया बनाना।
शिक्षा में व्यापार — ज्ञान को बिकाऊ बना देना।
राजनीति में भ्रष्टाचार — सत्ता के लिए जनता को भूल जाना।
यह सब कलयुग के डेविल के रूप हैं।
डिजिटल युग के राक्षस
आज इंटरनेट पर झूठ फैलाना, दंगे भड़काना, फेक न्यूज़ से समाज को तोड़ना — ये सब नई तरह की “राक्षसी प्रवृत्तियाँ” हैं।
साइबर क्राइम, ऑनलाइन फ्रॉड, निजी जानकारी का शोषण — यह कलयुग के मायावी असुरों का नया अवतार है।
क्या कोई देवता भी हैं आज?
हां, हर युग में संतुलन बना रहता है।
जहां राक्षस हैं, वहीं सत्य और न्याय के रक्षक भी हैं:
जो सच बोलने की हिम्मत करते हैं — पत्रकार, लेखक, कलाकार।
शिक्षा के माध्यम से जो समाज को उठाते हैं — शिक्षक और समाजसेवी।
जो अन्याय के खिलाफ लड़ते हैं — न्यायप्रिय अधिकारी, एक्टिविस्ट।
जो आध्यात्मिकता और मानवता को जोड़ते हैं — सच्चे साधु और संत।
ये सभी कलयुग के “राम” और “कृष्ण” हैं — जो किसी हथियार से नहीं, अपने विवेक और करुणा से युद्ध लड़ रहे हैं।
हम क्या करें?
1. सच को समझें और स्वीकारें।
बिना पक्षपात के इतिहास और वर्तमान को देखें।
2. किसी धर्म या जाति को निशाना न बनाएं।
व्यक्ति के कर्म देखें, न कि उसकी पहचान।
3. अपने अंदर के डेविल को पहचानें।
जब हम झूठ बोलते हैं, लालच करते हैं, चुप रहते हैं — तब हम खुद उसी राक्षस का हिस्सा बन जाते हैं।
4. ज्ञान, विवेक और करुणा को बढ़ाएं।
यही आज के अस्त्र हैं।
निष्कर्ष: शैतान कोई धर्म नहीं होता, एक प्रवृत्ति होती है
कलयुग का डेविल कोई एक धर्म, जाति या देश का नहीं है।
वो हर जगह है — और शायद हर इंसान के भीतर भी, जिसे हर रोज़ हर एक को खुद से हराना होता है।
अगर हम आंख खोलकर देखें, तो समझ आएगा कि लड़ाई धर्मों की नहीं, प्रवृत्तियों की है — और जीत हमेशा सत्य, प्रेम और करुणा की ही होती है।
