करोड़पति बनने का वहम: सट्टेबाज़ी की संस्कृति कैसे भारत के विकास में बाधा बन रही है/IPL

आज के भारत में बिना मेहनत किए करोड़पति बनने का सपना लगभग हर घर में देखा जा रहा है। यही कारण है कि ऑनलाइन सट्टेबाज़ी के प्लेटफॉर्म दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं —

झूठे सपनों के बदले लोगों की गाढ़ी कमाई लूटते हुए।

“अपनी टीम बनाओ, पैसा लगाओ और सब कुछ हार जाओ।”

यही कड़वी सच्चाई है जो हर दिन इस देश में दोहराई जा रही है।

ये प्लेटफॉर्म करोड़ों कमा रहे हैं, जबकि इन्हें अमीर बनाने वाले लोग खुद गरीब होते जा रहे हैं।

और सबसे शर्मनाक बात यह है कि बड़े-बड़े क्रिकेटर

और फिल्मी सितारे इन प्लेटफॉर्म्स का जोरों से प्रचार कर रहे हैं — सिर्फ पैसों के लिए।

“खेलिए और रातों-रात करोड़पति बन जाइए!”

और वीडियो के अंत में धीरे से बोल देते हैं:

“इस गेम की लत लग सकती है, आपको नुकसान हो सकता है, कृपया सावधानी से खेलें।”

यह ठीक वैसा ही है जैसे सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है —

“धूम्रपान से कैंसर होता है, कृपया इसका सेवन न करें।” — लेकिन फिर भी सिगरेट का उत्पादन कोई बंद नहीं करता।

हर सुबह लोग मंदिर, मस्जिद या अन्य धर्मस्थलों में जाकर भगवान से प्रार्थना करते हैं — “हे भगवान, आज मुझे करोड़पति बना देना।”

और इस उम्मीद में, वे सपनों में खो जाते हैं — सपनों में गाड़ियाँ, बंगले, नौकर, फैन फॉलोइंग — सब कुछ होता है।

लेकिन हकीकत में तो जेब में पड़े 50 रुपये भी शाम होते-होते हार जाते हैं।

फिर कसम खाते हैं कि अब कभी नहीं खेलेंगे।

लेकिन तभी एक और विज्ञापन आ जाता है जिसमें दिखाया जाता है कि कोई व्यक्ति एक अंदाज़े से करोड़पति बन गया। और फिर से, उम्मीद जाग जाती है।

उम्मीद — एक छोटा सा शब्द, लेकिन इंसान की सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी कमज़ोरी।

यही उम्मीद इन ऑनलाइन सट्टेबाज़ कंपनियों को करोड़ों कमाने का ज़रिया देती है, और हम जैसे लोग मुंगेरीलाल की तरह सपनों में खोए रहते हैं।

सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं देती, क्योंकि इन्हीं प्लेटफॉर्म्स से उसे मोटा टैक्स मिल रहा है।

और आम आदमी? वह करोड़ों जीतने की आस में अपनी ज़िंदगी की सारी जमा पूंजी गवां देता है — और कोई आवाज़ तक नहीं उठाता।

एक ऐसा देश जो भ्रम में जी रहा है

लोग खुशी-खुशी सब कुछ हारने आते हैं।

पर क्या कोई देश तब विकसित हो सकता है जब उसके नागरिक मेहनत से भागें और केवल किस्मत के सहारे अमीर बनने के सपने देखें?

ऐसी सोच के साथ क्या हम 2047 तक विकसित राष्ट्र बन सकते हैं? क्या हम वाकई ‘विश्वगुरु’ बन सकते हैं?

जब देश की ज़्यादातर आबादी सोशल मीडिया पर ही अपना समय बिताती है, तो उस देश का भविष्य क्या होगा?

बहुत कम लोग हैं जो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कुछ नया सीखने के लिए करते हैं।

बाकी तो बस समय बिताने आते हैं — पता नहीं लोगों के पास इतना समय आता कहाँ से है!

कोई सोचने की ज़हमत ही नहीं उठाता।

हर कोई सरकारी टीचर बनना चाहता है, लेकिन सरकारी स्कूल में पढ़ना कोई नहीं चाहता।

हर कोई अंबानी-अडानी बनना चाहता है, लेकिन काम कोई नहीं करना चाहता।

अपनी स्किल को सुधारने की जगह लोग दिन भर दूसरों को कोसते हैं और रात को सट्टा लगाकर हारते हैं — और फिर सो जाते हैं।

अब समय है जागने का।

भारत को सिर्फ सपने देखने वालों की नहीं, काम करने वालों की ज़रूरत है।

आशा को मेहनत, सीखने और तरक्की में लगाइए — न कि ऐसे प्लेटफॉर्म्स में जो आपकी मजबूरी और लालच से कमाई करते हैं।

भारत

1 thought on “करोड़पति बनने का वहम: सट्टेबाज़ी की संस्कृति कैसे भारत के विकास में बाधा बन रही है/IPL”

  1. Bade bade celebraties advertisement dete hain aur log pagalo ki tarah jua khelte hai aur har jate hain apni mehnat ki kamai

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