बहुत समय पहले की बात है। एक शांत और सुंदर गाँव के किनारे एक आश्रम हुआ करता था।
वहाँ एक बुजुर्ग संत रहते थे, जिनका नाम था स्वामी तत्वदर्शन।
वे बहुत ज्ञानी थे और दूर-दूर से लोग उनसे मार्गदर्शन लेने आते थे। उनके पास एक युवा शिष्य था, नाम था अर्जुन।
अर्जुन ने हाल ही में संन्यास लिया था और संसार से विरक्त होकर ज्ञान की खोज में आया था।

एक दिन शाम के समय, जब सूरज अस्त हो रहा था और पूरा आश्रम शांति में डूबा हुआ था,
अर्जुन ने अपने गुरु से एक सवाल पूछा जो उसे लंबे समय से परेशान कर रहा था।
“गुरुदेव,” अर्जुन ने धीरे से कहा, “दुनिया में इतनी बुराई है, लोग स्वार्थी हैं,
असत्य बोलते हैं, एक-दूसरे का बुरा करते हैं।
मैं जानता हूँ कि आप हमें अच्छाई की राह पर चलना सिखा रहे हैं, लेकिन क्या एक अकेला इंसान कुछ बदल सकता है?”
स्वामीजी मुस्कुराए।
उन्होंने अर्जुन की आँखों में झाँका और बोले, “क्या तुम्हें लगता है कि एक बूँद सागर को बना नहीं सकती?“
अर्जुन ने सिर झुका लिया, फिर बोला, “गुरुदेव, मैं जानता हूँ कि छोटी-छोटी चीजें महत्त्वपूर्ण होती हैं,
लेकिन जब दुनिया इतनी बड़ी है और समस्याएँ इतनी भारी हैं, तो एक अकेला इंसान कितना कुछ कर सकता है?”
गुरुजी खड़े हो गए। उन्होंने एक दीपक उठाया, उसमें तेल भरा और बाती लगाकर जलाया।
दीपक की लौ धीरे-धीरे अंधेरे में फैलने लगी। गुरुजी ने अर्जुन से कहा, “इसे लेकर मेरे साथ आओ।”
दोनों आश्रम से निकलकर पास ही स्थित एक गुफा की ओर चल पड़े।
गुफा बहुत पुरानी और अंधेरी थी। जैसे ही वे अंदर पहुँचे, अर्जुन को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन जैसे ही दीपक की रौशनी भीतर फैली, दीवारें चमक उठीं और एक हल्का उजाला पूरे वातावरण में भर गया।
गुरुजी ने अर्जुन से पूछा, “अब तुम क्या देख रहे हो?”
अर्जुन ने जवाब दिया, “गुरुदेव, अब मुझे सब कुछ साफ दिखाई दे रहा है। दीपक की रौशनी से यह अंधेरा मिट गया।”
“तो क्या एक छोटे से दीपक ने इस पूरी गुफा को रौशन नहीं कर दिया?” – गुरुजी ने गंभीर स्वर में कहा।
अर्जुन चुप हो गया। वह समझ चुका था कि गुरुजी उसे क्या सिखाना चाहते हैं।
स्वामीजी बोले,
“बेटा, यह गुफा इस संसार की तरह है, और यह दीपक तुम्हारी अच्छाई है। तुम चाहो तो अपने आस-पास के अंधकार को दूर कर सकते हो। अगर हर कोई अपने हिस्से का दीपक जलाए, तो पूरी दुनिया रौशन हो सकती है।”
फिर उन्होंने एक कहानी सुनाई…
एक और उदाहरण – मोहन की कहानी
स्वामीजी बोले, “क्या तुमने मोहन के बारे में सुना है?”
अर्जुन ने सिर हिलाया, “नहीं।”
“मोहन एक मामूली किसान था। वह पढ़ा-लिखा नहीं था, लेकिन उसमें करुणा और सेवा की भावना थी। गाँव में जब भी किसी को मदद की ज़रूरत होती, वह सबसे पहले पहुँचता था – चाहे खेत में काम करना हो, किसी बीमार को डॉक्टर के पास ले जाना हो, या किसी गरीब की शादी में सहायता देनी हो।”
“धीरे-धीरे उसके कामों की चर्चा फैलने लगी। और फिर, पूरे गाँव ने मिलकर एक समाज सेवा केंद्र खोल दिया। आज वह गाँव आत्मनिर्भर है – सिर्फ एक आदमी की सोच और नीयत के कारण।”
अर्जुन अब पूरी तरह प्रभावित हो चुका था।
अंतिम संदेश
गुरुजी बोले:
“याद रखो अर्जुन, यदि तुम अपने आप को छोटा समझोगे, तो तुम कभी बड़े परिवर्तन नहीं कर पाओगे। लेकिन अगर तुम यह मान लो कि तुम एक चिंगारी हो जो आग बन सकती है – तो कोई ताक़त तुम्हें नहीं रोक सकती।”
“एक दीपक अकेला अंधकार नहीं मिटा सकता, लेकिन वह शुरुआत ज़रूर कर सकता है। और शुरुआत ही सबसे महत्वपूर्ण कदम होती है।”
उस दिन अर्जुन की सोच बदल गई। उसने यह ठान लिया कि वह जीवन में जितना हो सके, अच्छाई फैलाएगा। उसने छोटे-छोटे कदम उठाने शुरू किए – अपने गाँव में पढ़ाई के लिए बच्चों को इकट्ठा करना, वृद्धों की सेवा करना, और पर्यावरण की रक्षा करना। धीरे-धीरे उसकी प्रेरणा से कई लोग जुड़ते गए।
कहानी की सीख:
बदलाव लाने के लिए आपको महान बनने की ज़रूरत नहीं है, सिर्फ नीयत सच्ची होनी चाहिए।
एक दीपक भी अंधेरे से लड़ सकता है, बस उसे जलना आना चाहिए।
जब आप अच्छा करते हैं, तो लोग आपके साथ जुड़ते हैं और बदलाव की लहर बन जाती है।
“जितना कर सकते हो, उतना करो।
मत सोचो कि तुम अकेले हो – सोचो कि तुम शुरुआत हो।”
